शाम छः बजे के करीब कुछ दोस्तों के साथ नेहरू प्लेस में दफ्तर के बाहर खड़ा चाय पकौड़ोोंोकक का आनंद ले रहा था कि एक सज्जन पास आकर मुझसे कुछ बात करने लगे। मुझे तो समझ नहीं आया मगर जब कमलाकन्नन ने उनकी बात समझ कर उनसे बात करना शुरू किया तो लगा कि तमिलभाषी ही होंगे। कुछ देर बात करने के बाद मेरी तरफ़ मुखातिब होकर अंग्रेजी में क्षमा मांगते हुए चले गए। कमला कन्नन ने बाद में बताया कि न सिर्फ़ वे मुझे तमिल समझ रहे थे बल्कि उनका पूरा विश्वास था कि मैं कोयम्बत्तूर में उनके मोहल्ले में ही रह चुका हूँ।
बात आयी गयी हो गयी लेकिन मुझे कुछ और मिलती-जुलती घटनाओं की याद दिला गयी। बैंगलूरू में मुझे देखते ही कुछ ज्यादा ही गोरे-चिट्टे लोगों के समूह में से एक बहुत खुशमिजाज़ बुजुर्ग लगभग दौड़ते हुए से मेरे पास आए और हाथ मिलाकर कुछ कहा जो मेरी समझ में नहीं आया। कई वर्षों से कर्णाटक जाना होता था मगर कभी कन्नड़ भाषा सीखने की कोशिश भी नहीं की, संयोग भी नहीं बना। मुझे शर्मिंदगी के साथ उन महाशय से कहना पडा कि मैं उनकी भाषा नहीं समझता हूँ। तब उन्होंने निराश भाव से अंग्रेजी में पूछा कि क्या मैं कश्मीरी नहीं हूँ। और मैंने सच बताकर उनका दिल सचमुच ही तोड़ दिया।
बरेली में मेरे सहपाठियों की शिकायत थी कि मेरी भाषा आम न होकर काफी संस्कृतनिष्ठ है जबकि जम्मू में हमारे सिख पड़ोसी मेरी साफ़ उर्दू जुबान की तारीफ़ करते नहीं थकते थे। लेकिन भाषा के इस विरोधाभास के बावजूद इन दोनों ही जगहों पर लोगों ने हमेशा मुझे स्थानीय ही माना।
लगभग चार महीने के लिए लुधियाना में भी रहा। होटल के एक नेपाली कर्मचारी ने यूँ ही बातों में पूछा कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ तो मैंने भी उस पर ही सवाल फैंक दिया, "अंदाज़ लगाओ।" उसके जवाब ने मुझे आश्चर्यचकित नहीं किया, "मुझे तो आप अपने नेपाल के ही लगते हैं।"
धीरे-धीरे मुझे पता लग गया कि मेरे साधारण से व्यक्तित्व को आसपास के माहौल में मिल जाने में आसानी होती है। इसलिए जब मुम्बई में एक लंबे-चौडे व्यक्ति ने एक अनजान भाषा में कुछ कहा तो मैं समझ गया कि यह भी मुझे अपने ही गाँव का समझ रहा है। मैंने अंग्रेजी में उसके प्रदेश का नाम पूछा तो उसने कहा कि वह तो मुझे अरबी समझा था मैं तो हिन्दी निकला।
यहाँ पिट्सबर्ग में लिफ्ट का इंतज़ार कर रहा था तो दो महिलाएँ आपस में बात करती हुई आयीं। वेशभूषा से मुसलमान लग रही थीं और उर्दू में बात कर रही थीं। उनमें से एक ने मुझसे पंजाबी उच्चारण की उर्दू में पूछा कि मैं कहाँ से हूँ। मैं कुछ कह पाता, इसके पहले ही दूसरी चहकी, "अपने पाकिस्तान से हैं, और कहाँ से होंगे?"
मेरे मुँह से बेसाख्ता निकला, "मैं एक भारतीय।"
पुनश्च: मैंने हाल ही में जब यह कहानी अपने गुजराती मित्र को सुनाई तो वे मुझे दूसरे पैराग्राफ पर ही रोककर अनवरत हँसने लगे, "अरे, तुम्हें कश्मीरी कौन समझेगा? तुम तो पक्के गुजराती लगते हो।"
बात आयी गयी हो गयी लेकिन मुझे कुछ और मिलती-जुलती घटनाओं की याद दिला गयी। बैंगलूरू में मुझे देखते ही कुछ ज्यादा ही गोरे-चिट्टे लोगों के समूह में से एक बहुत खुशमिजाज़ बुजुर्ग लगभग दौड़ते हुए से मेरे पास आए और हाथ मिलाकर कुछ कहा जो मेरी समझ में नहीं आया। कई वर्षों से कर्णाटक जाना होता था मगर कभी कन्नड़ भाषा सीखने की कोशिश भी नहीं की, संयोग भी नहीं बना। मुझे शर्मिंदगी के साथ उन महाशय से कहना पडा कि मैं उनकी भाषा नहीं समझता हूँ। तब उन्होंने निराश भाव से अंग्रेजी में पूछा कि क्या मैं कश्मीरी नहीं हूँ। और मैंने सच बताकर उनका दिल सचमुच ही तोड़ दिया।
बरेली में मेरे सहपाठियों की शिकायत थी कि मेरी भाषा आम न होकर काफी संस्कृतनिष्ठ है जबकि जम्मू में हमारे सिख पड़ोसी मेरी साफ़ उर्दू जुबान की तारीफ़ करते नहीं थकते थे। लेकिन भाषा के इस विरोधाभास के बावजूद इन दोनों ही जगहों पर लोगों ने हमेशा मुझे स्थानीय ही माना।
लगभग चार महीने के लिए लुधियाना में भी रहा। होटल के एक नेपाली कर्मचारी ने यूँ ही बातों में पूछा कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ तो मैंने भी उस पर ही सवाल फैंक दिया, "अंदाज़ लगाओ।" उसके जवाब ने मुझे आश्चर्यचकित नहीं किया, "मुझे तो आप अपने नेपाल के ही लगते हैं।"
धीरे-धीरे मुझे पता लग गया कि मेरे साधारण से व्यक्तित्व को आसपास के माहौल में मिल जाने में आसानी होती है। इसलिए जब मुम्बई में एक लंबे-चौडे व्यक्ति ने एक अनजान भाषा में कुछ कहा तो मैं समझ गया कि यह भी मुझे अपने ही गाँव का समझ रहा है। मैंने अंग्रेजी में उसके प्रदेश का नाम पूछा तो उसने कहा कि वह तो मुझे अरबी समझा था मैं तो हिन्दी निकला।
यहाँ पिट्सबर्ग में लिफ्ट का इंतज़ार कर रहा था तो दो महिलाएँ आपस में बात करती हुई आयीं। वेशभूषा से मुसलमान लग रही थीं और उर्दू में बात कर रही थीं। उनमें से एक ने मुझसे पंजाबी उच्चारण की उर्दू में पूछा कि मैं कहाँ से हूँ। मैं कुछ कह पाता, इसके पहले ही दूसरी चहकी, "अपने पाकिस्तान से हैं, और कहाँ से होंगे?"
मेरे मुँह से बेसाख्ता निकला, "मैं एक भारतीय।"
पुनश्च: मैंने हाल ही में जब यह कहानी अपने गुजराती मित्र को सुनाई तो वे मुझे दूसरे पैराग्राफ पर ही रोककर अनवरत हँसने लगे, "अरे, तुम्हें कश्मीरी कौन समझेगा? तुम तो पक्के गुजराती लगते हो।"
यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप जहां रहते हो , वहीं के लगने लगते हो। आज जहां क्षेत्रीयतावाद मायने रखने लगी है , ऐसी विशेषताएं मददगार सिद्ध होंगी।
ReplyDeleteक्या बात है भई..हम तो अपने रंग रुप के कारण रोज तमिल भाषा से टकरा जाते हैं-यहाँ कनाडा में सारे श्री लंकाई हमें तमिल ही समझ कर शुरु हो जाते हैं, जो हम हैं नहीं और हिन्दी भाषी अलग शक से देखते हैं. :)
ReplyDeleteअरब में हिन्दी का अर्थ भारतीय ही है। वहाँ भारत और पाकिस्तान से जाने वाले सारे मुसलमान हिन्दी मुसलमान कहे जाते हैं।
ReplyDeleteमित्र , आपने जो अनुभव सुनाए हैं ! वो अद्भुत हैं ! सर्फ महसूस करने की बात है ! आप शायद
ReplyDeleteबहुत जल्दी स्थानीयता को ग्रहण कर लेते हैं !
कई बार आपको लगा होगा की ये घटना मेरे
साथ पहले घट चुकी है ! पर कब ? क्यूँ ? कैसे ?
ये याद नही पङता ! आप की बात सिर्फ़ पोस्ट नही
है ! और मैं टिपणी जितने शब्दों में जवाब नही दे पाउँगा ! कभी मौका मिला तो अवश्य बात इस पर होगी ! पर ये घटनाएं और ग्रहण शक्ति यूँ ही नही है ! इसमे बहुत कुछ तो मन की निर्मलता से है ! आपकी स्थिति से हुबहू मैं बहुत पहले गुजर चुका हूँ ! शुभ है !
शुभकामनाएं !
!
is se achhi aur kya bat ho sakti hai ki aap dekhne waale ko aapne lagte ho,warna log to gale bhi milte hai chhurian chhupa kar.badhai aapko
ReplyDeleteजैसा देश वैसा भेष :) या कहे कि आप सही अर्थो में भारतीय हैं जहाँ गए वही के हो लिए :) यह तो अच्छा है न ..अपना सा सब समझे तो रहना अनजान जगह पर मुश्किल नही होता है |
ReplyDeleteकुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
ReplyDeleteसदियों रहा है दुश्मन दौर -ऐ -जमां हमारा
बस यही बात है कि हम पानी जैसे हैं, जिसमे घुले उनके जैसे बन गए...
और आप भी इसका अपवाद नहीं.. बहुत अच्छी बात है, जैसा देस, वैसा भेस...
जिसके ब्लॉग की पहचान ही स्मार्ट इंडियन हो उसके क्या कहने.... लगे रहो.... नाम नही जानता इसलिए वैसे लगे रहो के बाद अपना नाम लगा कर पढ़ लेना :)
ReplyDeletevichaaron aur vyavhaar me saadgi ho to yun hona laazmi hai...
ReplyDeleteहम...बड़ी मुश्किल है श्रीमान ......तभी आपने चेहरा नही डाला ब्लॉग पे ....अंदाजे बयाँ दिलचस्प है....
ReplyDeleteहर भारतवासी का सही परिचय तो यही है और यही होना चाहिए किन्तु दुख की बात है कि आज हर आदमी अपने इस परिचय को भूला हुआ है। आफने अपनी इस पहचान को ज़िन्दा रखा है आपको बधाई। भारत माता को ऐसे सपूतों पर नाज़ होगा। सस्नेह।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा.
ReplyDelete================
मैं भी एक भारतीय
चन्द्रकुमार
यही तो तक़लीफ़ है, दोस्त
ReplyDeleteकि दुनिया ग्लोबलाइज़ेशन का
पहाड़ा पढ़ते नहीं थकती, लेकिन
अपने अंदर यहाँ का +/- वहाँ का
जोड़ घटाव जारी रखती है ।
मेरे साथ भी यही होता है,
इसलिये इसमें एक रत्ती भी
अतिशयोक्ति नहीं लग रही ।
बहुत खुब एक १००% शुद्ध भारतीया, बहुत अच्छी बात हे, हो भी तो स्मार्ट इंडियन,बहुत अच्छी लगी आप की पोस्ट,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढिया।
ReplyDeleteलेकिन एक बार समझ में नहीं आई कि एक तरु तमिल और दूसरी ओर मुस्लिम महिलाएं। इतना बडा विरोधाभास समझ में नहीं आ रहा।
लगता है कि अब तो आपसे मिलना ही पडेगा।
वाह क्या बात है .आपको तो कहीं परेशानी नही होती होगी पर सिर्फ़ तब तक जब तक जब तक आप कुछ बोलते नही होंगे
ReplyDeleteकुदरत ने आपको एक वरदान दे दिया है -पर आशा है आप चार्ल्स शोभराज तो नही ही बनेंगे
ReplyDeleteबरेली में तो हम भी रहे हैं १९९७-२००० तक। हमने १२वी G.I.C. बरेली से १९९८ में उत्तीर्ण की थी।
ReplyDeleteये पोस्ट २००८ अगस्त में लिखी गई थी वहां टिप्पणी पढते हुए लगा कि अरविन्द जी तब से अब तक वैसे ही हैं :)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteअब इतने साल बाद तो हँस सकता हूँ। हा हा हा!
:)
ReplyDeleteकाले गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है
ReplyDeleteकुछ और न आता हो हमको, हमे प्यार निभाना आता है
जिसे मान चुकी सारी दुनिया,
मैं बात, मैं बात वोही दोहराता हूं
भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं
है प्रीत जहाँ की रीत सदा ...
आज फिर पढ़ा और आनंद लिया. क्या कभी किसी अमेरिकन ने आपको ऐसा नहीं कहा?
ReplyDeleteन, लेकिन यहाँ सिर्फ़ जाति पूछी गयी
Deleteआप खुशनसीब हैं कि आपके शरीर से अपनेपन की सौंधी महक हर व्यक्ति महसूस करता है
ReplyDeleteये विरला किन्तु नैसर्गिक विलक्षण गुण है ये बड़ाई नहीं जी सत्य है लाखों में एक इस अनमोल गुण का मालिक होता है
रामनवमी की शुभकामना संग प्रणाम...
आभार रमाकांत जी. आपका बड़प्पन अनुकरणीय है.
Deleteचिट्ठाकारी का क्या समय था इतनी सारी टिप्पणियाँ | सुन्दर |
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