Thursday, August 21, 2008

क्यों सताती हो?

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मुस्कुराती हो
इठलाती हो
इतराती हो
रूठ जाती हो
फिर याद आती हो
यही चक्र दुविधा का
फिर फिर चलाती हो
कभी कहो भी
इतना क्यों सताती हो?


21 comments:

  1. waah anurag jee aaj yah rup!!
    chaliye yah bhi achchha hai

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  2. भाई यह जिन्दगी हे बहुत नटखट, बिलकुल आप कि कविता की तरह से,
    धन्यवाद, एक सुन्दर कविता के लिये

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  3. मुस्कुराती , इठलाती, इतराती ,रूठ जाती हो
    फिर याद आती, यही चक्र दुविधा का
    फिर फिर चलाती , कभी कहो भी
    इतना क्यों सताती हो?
    क्या बात है ? नायाब हीरा शब्द हैं !
    जिन्दगी के मायने यही हैं शायद !
    बेहतरीन बुनावट है ! मजा आ गया !

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  4. वाह जी वाह.. बहुत सुंदर

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  5. नही सतायेगी तो कहाँ याद रखोगे ?

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  6. मुस्कुराती , इठलाती, इतराती ,रूठ जाती हो
    फिर याद आती, यही चक्र दुविधा का
    फिर फिर चलाती , कभी कहो भी
    इतना क्यों सताती हो?

    क्या बात है!
    बेहद शानदार रचना के लिए बधाई!

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  7. अगर आपको नही सताएगी तो
    फ़िर किसको सताएगी ! :)
    सुंदर रचना !

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  8. वाह, क्‍या बात है। बहुत खूब। जमाए रहिए :)

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  9. बहुत सुन्दर।

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  10. हाँ ज़िंदगी हो या फिर मौत
    सब का यही हाल है

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  11. acchi kavita likhi hai aap ne ..accha laga padh kar

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  12. मित्र आपने २८ कौर का डिनर दिया सै !
    इब ताऊ का पेट क्यूँ कर भर सकदा है
    इतने कम चारे में ? खुराक बढाओ म्हारी !
    २८ कौर डिनर जब इतना स्वादिष्ट सै त
    फुल डिनर कितना लजीज होगा ?
    ( आपकी ये कविता २८ शब्दों की है !)

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  13. बहुत मासूम सवाल है।
    खुदा आपको ऐसे सैकडों सवाल घेरे रहें।

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  14. यह उनका प्यार है, इस में आनंद लोजिये.

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  15. bahut sundar anurag ji... kya kam shabdon mein poori baat kahi hai... badhai :)

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  16. Hi Anuragji,
    Beautiful writing. I loved all your stuff. I would love to speak to u or communicate thru email. I live in seattle, wa and i am a composer and musician. Wanted to see if you can write something for me song wise.
    My email is sanjeevmusic@gmail.com
    Warm regards
    Sanjeev sharma

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