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आपके सहयोग से एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ, नायकत्व को पहचानने का। तीन कड़ियाँ हो चुकी हैं, पर बात अभी रहती है। भाग 1; भाग 2; भाग 3; अब आगे:
नायकों को सुपर ह्यूमन दर्शाना मेरा उद्देश्य नहीं है। वे भी हमारे-आपके बीच से ही आते हैं लेकिन कुछ अंतर के साथ। जैसा कि हमने पहले देखा कि वे अपनी नहीं दूसरों की सोचते हैं। कार्य कितना भी कठिन हो वे अपनी सोच को कार्यरूप करने का साहस रखते हैं और बाधा कैसी भी आयें, सफल कार्य-निष्पादन की क्षमता और कुशलता रखते हैं। और यह सब काम वे सबको साथ लेकर करते हैं। नायक स्पूनफ़ीड नहीं करते बल्कि समाज को सक्षम बनाते हैं। वे विघ्नसंतोषी नहीं बल्कि सृजनकारी होते हैं। वे न्यायप्रिय होते हैं और सत्यनिष्ठा को अन्य निष्ठाओं के ऊपर रखते हैं। इन सबके साथ उनका चरित्र पारदर्शी होता है क्योंकि वे मन-वचन-कर्म से ईमानदार होते हैं। जो होते हैं, वही दिखते हैं, वही कहते हैं, वही करते हैं। उनका उद्देश्य सत्तारोहण नहीं बल्कि जनसेवा होता है। वे समाज पर अपनी विचारधारा और तानाशाही थोपते नहीं। खलनायकों को उनके चमचे भले ही विश्व का सबसे बड़ा विचारक बताते हों, नायकों का सम्मान जनता स्वयं करती है क्योंकि वे जनसामान्य के सपनों को साकार करने की राह बनाते हैं।
झांसी की रानी अबला नहीं थीं। आज़ाद हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठे। भारत के अधिसंख्य क्रांतिकारियों ने जीवन के तीन दशक भी नहीं छुए। हम सब जीवन भर सीखते हैं, फिर भी सर्वस्व न्योछावर करना नहीं सीख पाते। कुछ लोग तो मानो बात-बात पर आहत होने, शिकायत करने की कसम ही खाकर बैठे होते हैं। नायक घुलने वाली मिट्टी के नहीं बनते। वे अपने साथ दूसरों के जीवन को भी आकार देते हैं। उम्र के साथ हम सभी के अनुभव बढते हैं, परंतु नायक ज्ञानपिपासु होते हैं। ज्ञान महत्वपूर्ण है इसलिये बहुत कुछ जानते हुए भी नायक जीवन भर सीखते हैं। वे हमसे बेहतर सीखते हैं क्योंकि वे परस्पर विरोधी विचारधाराओं में से भी जनोपयोगी बिन्दु चुन पाते हैं। उनके साहस और उदारता जैसे गुण उनसे असम्भव कार्य निष्पादित करा पाते हैं। साहस को पूर्ण करने के लिये नायकों के पास धैर्य भी बहुतायत में होता है और उन्हें इन गुणों का संतुलन भी आता है। नायकों की आँकलन क्षमता उनकी एक विशेषता है। वे अपनी क्षमता का सही आँकलन कर पाते हैं और साथ ही अपने सामने रखी चुनौतियों का भी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ नायक के कर्म का फल उसके जीवनकाल में समाज को नहीं मिल पाता है। इससे उनका आँकलन ग़लत सिद्ध नहीं होता। वे जानते हैं कि कार्यसिद्धि में समय लगेगा परंतु यदि वे आरम्भिक आहुति न दें तो शायद वह कार्य असम्भव ही रह जाये। कुल मिलाकर नायक असम्भव को सम्भव बनाने की प्रक्रिया जानते हैं।
कठिन समय नायक उत्पन्न तो नहीं करता परंतु कठिन समय में एक नायक की परीक्षा आसानी से हो जाती है। भारत का स्वाधीनता संग्राम हो, विभाजन या देश पर कम्युनिस्ट चीन का अक्रमण, जीवन में कठिन समय आते ही हैं। सभ्य समाज को खलनायक अपना ऐसा निकृष्टतम रूप दिखाते हैं कि आम आदमी बेबसी महसूस करता है। ऐसे समय पर नायकों की पहचान आसानी से हो जाती है। जिनकी तैयारी है, जो सक्षम भी हैं और इच्छुक भी, वे ऐसे समय पर स्वतः ही आगे आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं जब नायक अपना समय चुनते हैं। वे धैर्य और संयम के साथ सही समय की प्रतीक्षा करते हैं। वे जोश से नहीं होश से संचालित होते हैं। नायक प्रकाश-दाता भी हैं और पथ-निर्माता भी। नायकों के विभिन्न स्तर हो सकते हैं और नायकों के अपने नायक भी होते हैं। हम चाहें तो उनकी इस व्यक्तिगत रुचि में उनसे असहमत भी हो सकते हैं। रामायण से उदाहरण लें तो हनुमान जी अपने आप में एक नायक भी हैं पर उनके नायक श्रीराम हैं। इसी प्रकार गांधी को नायक न मानने वाला कोई व्यक्ति विनोबा भावे या नेताजी सुभाष को अपना नायक मानता रह सकता है, भले ही वे दोनों ही गांधीजी को जीवनपर्यंत अपना नायक मानते रहे।आपके सहयोग से एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ, नायकत्व को पहचानने का। तीन कड़ियाँ हो चुकी हैं, पर बात अभी रहती है। भाग 1; भाग 2; भाग 3; अब आगे:
वीरांगना दुर्गा भाभी |
सूरा सोहि सराहिये जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे तऊँ न छाँड़े खेत ~संत कबीर
रानी लक्ष्मीबाई (ब्रिटिश लाइब्रेरी) |
अष्टादशपुराणानां सारं व्यासेन कीर्तितम्। परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़नम्।।
(परोपकार पुण्य है और परपीड़ा पाप है)
कठिन समय = नायक की पहचान |
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्ति: परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतज्ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।
(साधु का ज्ञान, धन व शक्ति जनसामान्य के विकास, समृद्धि व रक्षा के लिये होती है)
जगप्रसिद्ध जननायक महात्मा गांधी |
नाक्षरं मंत्ररहितं नमूलंनौषधिम्। अयोग्य पुरूषं नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभ:।।
(नायक हर व्यक्ति में छिपी सम्भावना देख सकते हैं)
चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊँ |
वीर सावरकर - प्रथम दिवस आवरण |
ऐसा लगता है कि नायकों में परोपकार की प्रवृत्ति होती है। लेकिन यह प्रवृत्ति एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है। अनुकूल वातावरण उत्पन्न करके हम इसे बढावा दे सकते हैं। इसी प्रकार विभिन्न कौशल सीखकर और बच्चों को सिखाकर हम अपनी और उनकी क्षमतायें और आत्मविश्वास बढा सकते हैं। मुझे लगता है कि नायकत्व के निम्न गुण सीखे जा सकते हैं और उनकी उन्नति और प्रसार के लिये हमें वातावरण बनाना ही चाहिये: स्वास्थ्य, साहस, करुणा, परोपकार, दान, उदारता, समन्वय, सामाजिक ज़िम्मेदारी, विभिन्न कौशल।
इस विषय पर विमर्श के लिये इतना कुछ है कि कभी पूरा न हो परंतु अपनी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए मैं अगली दो कड़ियों में इस शृंखला के समापन का वायदा करके यहाँ से विदा लेता हूँ। चलते-चलते बस एक प्रश्न: क्या आपने अपने आस-पास बिखरे नायकत्व को पहचाना है?
[क्रमशः]
[सभी चित्र/स्कैन अनुराग शर्मा द्वारा :: Snapshots by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* प्रेरणादायक जीवन-चरित्र
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 1
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 2
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 3
* डॉक्टर रैंडी पौष (Randy Pausch)
* महानता के मानक