निर्मल आनंद वाले भाई अभय तिवारी कम लिखते हैं मगर जो भी लिखते हैं उसमें दम होता है. हमारी तो उनसे अक्सर असहमति ही रहती है मगर एक विचारवान मौलिक चिन्तक से असहमत होने में भी मज़ा आता है. निर्मल आनंद उन कुछ ब्लोग्स में से है जिन्हें मैं नियमित पढता हूँ. हाँ, टिप्पणी कम करता हूँ असहमति को अपने तक ही रखने के उद्देश्य से. अभी उनकी कविता बँटा हुआ सत्य पढी और उसके विचार ने ही इस कविता को जन्म दिया. कई बार कुछ पढ़कर पूरक विचार पर ध्यान जाता है. इसे भी उस कविता की पूरक कविता ही समझिये.
(अनुराग शर्मा)
सत्य पहले भी बँटा हुआ था
फर्क बस इतना था कि
तब टुकड़े जोड़कर सीने की
कोशिश होती थी
पञ्च परमेश्वर करता था
सत्यमेव जयते
पाँच अलग-अलग सत्य जोड़कर
विषम संख्या का विशेष महत्त्व था
ताकि सत्य को टांगा न जा सके
हंग पार्लियामेंट की सूली पर
सत्य के टुकड़े मिलाकर
निर्माण करते थे ऋषि
अपौरुषेय वेद का
टुकड़े मिलकर बना था
सत्य का षड-दर्शन
देवासुर में बँटा सत्य
एकत्र हुआ था
समुद्र मंथन के लिए
और उससे निकले थे
रत्न भांति-भांति के
सत्य
हमेशा टुकड़ों में रहता है
यही उसकी प्रवृत्ति है
मेरे टुकड़े में
अपना मिलाओगे
तभी सत्य को पाओगे
तभी सत्य को पाओगे
Tuesday, January 12, 2010
Saturday, January 9, 2010
पीड़ित भी अपराधी भी [इस्पात नगरी से - २३]
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ब्लॉग जगत भी हमारे संसार का ही छोटा रूप है. हर तरह के लोग, हर तरह की नज़र. किसी को दुनिया की सारी कमियाँ अमेरिका से ही शुरू होती दिखती हैं जबकि किसी के लिए यौन-अपराध का मूल कारण कुछ नारियों के परिधान-चुनाव के सिवा कुछ नहीं है. ऐसे में मैं अपराध से सम्बंधित दो अमेरिकी पत्रों को आपके साथ बांटने का ख़तरा उठा रहा हूँ. पिछले हफ्ते केवल चार दिन के अंतराल में यहाँ अमेरिका में अपराध से सम्बंधित दो ऐसी रिपोर्टें देखने को मिलीं जो चौंकाती भी हैं और आँखें भी खोलती हैं. इन दोनों रिपोर्टों का उभयनिष्ठ तत्व बाल-अपराधी हैं.
न्याय विभाग के एक अध्ययन ने यह खुलासा किया है कि बाल सुधार गृहों में रहते हुए समय में लगभग १२% लोग यौन-शोषण के शिकार बनते हैं. इस अध्ययन में कुल १९५ सुधार ग्रहों के १३ से २१ वर्ष की आयु के ९१९८ निवासियों को शामिल किया गया था. इस रिपोर्ट के आने के बाद कुछ राज्यों ने अपने सुधार गृहों की स्वतंत्र जांच कराने का निर्णय लिया है.
न्याय विभाग की ही सन २००४ के आंकड़ों पर आधारित एक अन्य रिपोर्ट से एक खुलासा यह हुआ है कि बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में अपराध करने वाले ३६% लोग बच्चे (१८ वर्ष से कम वय) ही हैं. हालांकि हर आठ में सिर्फ एक ही बारह वर्ष से कम आयु का है. इन बाल यौन-अपराधियों में ९३% लड़के और सात प्रतिशत लडकियां हैं.
इस रिपोर्ट का कहना है कि बहुत से ऐसे अपराधों की शुरूआत उत्सुकतावश शुरू होती है और समुचित यौन-शिक्षा की सहायता से बच्चों को सही उम्र में सही गलत का भेद समझाकर इन गलतियों में कमी लाई जा सकती है. स्कूलों में यौन-शिक्षा पर पहले भी बहुत सी ब्लॉग-बहसें हो चुकी हैं. मेरा उद्देश्य उन्हें पुनरुज्जीवित करना नहीं है मगर असलियत से आँखें मूंदना भी गैर-जिम्मेदाराना ही है.
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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ब्लॉग जगत भी हमारे संसार का ही छोटा रूप है. हर तरह के लोग, हर तरह की नज़र. किसी को दुनिया की सारी कमियाँ अमेरिका से ही शुरू होती दिखती हैं जबकि किसी के लिए यौन-अपराध का मूल कारण कुछ नारियों के परिधान-चुनाव के सिवा कुछ नहीं है. ऐसे में मैं अपराध से सम्बंधित दो अमेरिकी पत्रों को आपके साथ बांटने का ख़तरा उठा रहा हूँ. पिछले हफ्ते केवल चार दिन के अंतराल में यहाँ अमेरिका में अपराध से सम्बंधित दो ऐसी रिपोर्टें देखने को मिलीं जो चौंकाती भी हैं और आँखें भी खोलती हैं. इन दोनों रिपोर्टों का उभयनिष्ठ तत्व बाल-अपराधी हैं.
न्याय विभाग के एक अध्ययन ने यह खुलासा किया है कि बाल सुधार गृहों में रहते हुए समय में लगभग १२% लोग यौन-शोषण के शिकार बनते हैं. इस अध्ययन में कुल १९५ सुधार ग्रहों के १३ से २१ वर्ष की आयु के ९१९८ निवासियों को शामिल किया गया था. इस रिपोर्ट के आने के बाद कुछ राज्यों ने अपने सुधार गृहों की स्वतंत्र जांच कराने का निर्णय लिया है.
न्याय विभाग की ही सन २००४ के आंकड़ों पर आधारित एक अन्य रिपोर्ट से एक खुलासा यह हुआ है कि बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण के मामलों में अपराध करने वाले ३६% लोग बच्चे (१८ वर्ष से कम वय) ही हैं. हालांकि हर आठ में सिर्फ एक ही बारह वर्ष से कम आयु का है. इन बाल यौन-अपराधियों में ९३% लड़के और सात प्रतिशत लडकियां हैं.
इस रिपोर्ट का कहना है कि बहुत से ऐसे अपराधों की शुरूआत उत्सुकतावश शुरू होती है और समुचित यौन-शिक्षा की सहायता से बच्चों को सही उम्र में सही गलत का भेद समझाकर इन गलतियों में कमी लाई जा सकती है. स्कूलों में यौन-शिक्षा पर पहले भी बहुत सी ब्लॉग-बहसें हो चुकी हैं. मेरा उद्देश्य उन्हें पुनरुज्जीवित करना नहीं है मगर असलियत से आँखें मूंदना भी गैर-जिम्मेदाराना ही है.
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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Wednesday, January 6, 2010
ख्याल अपना अपना
(अनुराग शर्मा)
नज़र अपनी-अपनी ख्याल अपना अपना
हकीकत वही है ख्वाब अपना अपना
अगर दिल की मंज़िल के संकरे हैं रस्ते
मुहब्बत है पक्की हिसाब अपना अपना
गिरा के दीवारें जलाया मकाँ जो
मुड़ मुड़ के देखा लगा अपना अपना
सुर्खी हिना की महावर की लाली
लहू से निखारें शबाब अपना अपना
जीवन है नश्वर टिकेगा ये कब तक
सवाल इक वही है जवाब अपना अपना
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