ज़ालिम फ़लक ने लाख मिटाने की फ़िक्र की
हर दिल में अक्स रह गया तस्वीर रह गयी
भगवती चरण (नागर) वोहरा 4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930 |
लाहौर कांग्रेस में बांटा गया "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र" हो या क्रांतिकारियों का दृष्टिकोण बताता हुआ "बम का दर्शन-शास्त्र (फ़िलॉसॉफ़ी ओफ़ द बॉम)" नामक पत्र हो, भगवतीचरण वोहरा अपने समय के क्रांतिकारियों के प्रमुख विचारक और लेखक रहे थे। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और साथियों की फ़ांसी के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने जब हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के पुनर्गठन का बीडा उठाया तब नई संस्था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (हि.सो.रि.ए.) में पंजाब की ओर से शामिल होने वाले क्रांतिकारियों में भगवतीचरण वोहरा, सरदार भगत सिंह और सुखदेव थापर का नाम प्रमुख था। नौजवान भारत सभा के सह-संस्थापक श्री भगवतीचरण वोहरा "नौजवान भारत सभा" के प्रथम महासचिव भी थे।
वोहरा परिवार |
भाई के अंतिम क्षण |
9-10 सितम्बर 1928 को फ़ीरोज़शाह कोटला में हुई हि.सो.रि.ए. की गुप्त प्रथम राष्ट्रीय पंचायत में झांसी को मुख्यालय, चन्द्रशेखर "आज़ाद" को मुख्य सेनापति और भगवतीचरण वोहरा को प्रमुख सलाहकार चुना गया और उन्होंने ही संस्था के घोषणा पत्र का प्रारूप तैयार किया था। तभी नवनिर्मित संस्था द्वारा आज़ादी के उद्देश्य के लिये बमों के निर्माण और प्रयोग का निश्चय हुआ था। समझा जाता है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली सेशन कोर्ट में पढा गया संयुक्त बयान भाई भगवतीचरण के निर्देशन में ही तैयार हुआ था।
हमें ऐसे लोग चाहिये जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय और झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने।यंग इंडिया में जब गांधीजी ने क्रांतिकारियों को कायर कहकर उनके कार्य की निन्दा करते हुए "कल्ट ऑफ़ द बम" आलेख लिखा तब चन्द्रशेखर "आज़ाद" के प्रोत्साहन के साथ भगवती भाई ने "फ़िलॉसॉफ़ी ऑफ़ द बम" का प्रभावशाली और चर्चित आलेख लिखा था। यह आलेख जनता के बीच बहुत अच्छी तरह वितरित हुआ परंतु पुलिस अपने पूरे प्रयास के बाद भी इसके उद्गम का पता न लगा सकी।
~ भगवतीचरण वोहरा
मेरे पति की मृत्यु 28 मई 1930 में रावी नदी के किनारे बम विस्फोट के कारण हुई थी। उनके न रहने से भैया (आज़ाद) कहते थे कि उनका दाहिना हाथ कट चुका है। ~ दुर्गा भाभीइस पत्र के बाद ही पण्डित मोतीलाल नेहरू ने क्रांतिकारियों की दृष्टि को पहचाना और आनन्द भवन (इलाहाबाद) में गांधीजी के साथ क्रांतिकारियों की भेंट कराई। दोनों पक्ष ही एक-दूसरे को समझाने में असफल रहे परंतु भाई भगवतीचरण की लेखनी के कारण क्रांतिकारियों को कॉंग्रेस में मोतीलाल नेहरू के रूप में एक पक्षकार अवश्य मिला।
युद्ध हमारे साथ आरम्भ नहीं हुआ है और हमारे जीवन के साथ समाप्त नहीं होगा। हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कडी मात्र होंगे जिसका सौन्दर्य कामरेड भगवतीचरण के दारुण पर गर्वीले आत्म त्याग और हमारे प्रिय योद्धा आजाद की गरिमामय मृत्यु से निखर उठा है। ~ सरदार भगत सिंह (3 मार्च 1931)लाहौर षडयंत्र काण्ड में शहीदत्रयी को मृत्युदंड की घोषणा के बाद हि.सो.रि.ए. ने तय किया कि क़ैद क्रांतिकारियों को लाहौर जेल से न्यायालय ले जाते समय नये और अधिक शक्तिशाली बमों का प्रयोग करके उन्हें छुड़ा लिया जाये। सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह को छुड़ाने के प्रयास के लिये बनाये गये बमों के परीक्षण के समय 28 मई 1930 को रावी तट पर हुई दुर्घटना में वोहरा जी का असामयिक निधन हो गया। उनके अंतिम समय में विश्वनाथ वैशम्पायन और सुखदेव राज उनके साथ थे। यही सुखदेव राज संयोगवश आज़ाद के अंतिम समय में भी साथ रहे थे।
आज आज़ाद का कोई क्रांतिकारी साथी जीवित नहीं है। स्वतंत्र भारत में एक-एक कर उनके सारे साथियों की मौत हो गयी और किसी ने नहीं जाना। वे सब गुमनाम चले गये। उनके न रहने पर किसी ने आंसू नहीं बहाये, न कोई मातमी धुन बजी। किसी को पता ही न लगा कि ज़मीन उन आस्मानों को कब कहाँ निगल गयी।बम विस्फ़ोट से भाई का एक हाथ कलाई से आगे पूरा उड गया और दूसरे की उंगलियाँ नष्ट हो गयीं। पेट में इतना बडा घाव हुआ कि आंतें बाहर निकल आयीं। सुखदेव राज जब तक अन्य साथियों व चिकित्सक की तलाश में गये तब तक भाई की कोख से लगातार बहते खून को रोकने के लिये विश्वनाथ ने पहने हुए वस्त्रों की पट्टियाँ बनाकर प्रयोग कीं। शरीर को रक्त की कमी से सूखने से बचाने के लिये विश्वनाथ उनके मुँह में संतरे निचोडते रहे जोकि वे लोग पहले ही अपने साथ लेकर आये थे। अपने अंत से पहले भाई ने मुस्कराकर विश्वनाथ से कहा कि अच्छा ही हुआ कि घाव उनको ही हुए, यदि सुखदेव राज या विश्वनाथ वैशम्पायन को कुछ हो जाता तो वे भैय्या (आज़ाद) को क्या जवाब देते?
~ सुधीर विद्यार्थी
प्रणम्य है उनका त्याग। कोटि-कोटि नमन है उन्हें और उनके जज़्बे को!
[इस आलेख में प्रस्तुत सभी स्कैन क्रांतिकारियों से सम्बन्धित दुर्लभ मुद्रित आलेखों की जानकारी के प्रसार के सदुद्देश्य से सादर और साभार लिये गये हैं। चित्रों पर क्लिक करके उनका बडा प्रतिरूप देखा जा सकता है। स्वर्गीय भगवतीचरण वोहरा के अंतिम क्षणों का चित्रण उनके अंतिम क्षणों के साथी विश्वनाथ वैशम्पायन की लेखनी से लिया गया है।]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र
* महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद"
* शहीदों को तो बख्श दो
* नेताजी के दर्शन - तोक्यो के मन्दिर में
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई