बहे बहरे-फ़ना में जल्द या रब लाश "बिस्मिल" की
कि भूखी मछलियाँ हैं जौहरे-शम्शीर क़ातिल की
समझकर फूंकना इसकी ज़रा ए दागे नाकामी
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से
~ पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल
सरदार भगत सिंह |
महात्मा गांधी |
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शहीदत्रयी पोस्टर - 1933 |
1. भूमिका - प्रमाणिकता का संकट
2. क्रांतिकारी - आस्था, राजनीति और कम्युनिज़्म
3. मैं नास्तिक क्यों हूँ?
4. बौखलाहट अकारण है?
दिनेशराय द्विवेदी का आलेख: "भगतसिंह दोजख में?"
दिनेशराय द्विवेदी का प्रश्न: क्या नास्तिक होने से भगतसिंह नर्क में होंगे?"
आइये चलते हैं, प्रश्न के उत्तर ढूंढने:-
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मैं व्यक्तिगत जीवन में विश्वास रखता था परंतु अब (मृत्युदण्ड की घोषणा पर) यह भावना मेरे दिलो-दिमाग़ से निकल गयी है1वकील साहब, आपने भले ही मेरे सवाल का जवाब न दिया हो, मैं आपके प्रश्न का उत्तर अवश्य दूंगा। हाँ, यह जवाब देने में मुझे तकलीफ़ बहुत हो रही है क्योंकि मैं आपका आदर करता हूँ और साथ ही निस्वार्थ कार्य करने वाले चिंतकों, वैज्ञानिकों, संतजनों, क्रांतिकारियों आदि को जाति-धर्म, देश-काल, आस्था-अनास्था से ऊपर रखता हूँ। उन्हें अपने-पराये की ढेरियों में छाँटना या उनकी आस्था-अनास्था का लाभ अपनी विचारधारा के प्रचार के लिये उठाना तो दूर, ऐसा करते आलेखों का उत्तर देना भी मेरे लिये सहज नहीं है। फिर भी चूँकि जवाब देना आवश्यक है इसलिये एक भारतवंशी होने का कर्तव्य समझकर यह प्रयास कर रहा हूँ, ध्यान से सुनिये मेरा जवाब चार बिंदुओं में।
~ सरदार भगतसिंह
आज़ाद हिन्द फ़ौज़ सिंगापुर का शहीद स्मारक |
महामना - क्रांतिकारियों के आदर्श व शुभेच्छु |
कानपुर में संरक्षक - विद्यार्थी
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* दूसरी बात यह कि भगतसिंह की जान बचाने के लिये जान लड़ाने वाले महामना मदन मोहन मालवीय जैसे जिन महापुरुषों का ज़िक्र पहले किया गया है उनकी आस्था किसी से छिपी नहीं है। भगतसिंह जिस 'समाजवादी' संगठन के सदस्य थे उसके संस्थापक पंडित रामप्रसाद बिस्मिल "बोल्शेविकों की करतूत" और "दि ग्रेण्डमदर ऑफ रसियन रिवोल्यूशन" जैसी पुस्तकों के लेखक-अनुवादक होते हुए भी एक कम्युनिस्ट नहीं, बल्कि त्रिकाल सन्ध्या करने वाले एक आस्तिक थे। उसी समाजवादी संगठन के एक सदस्य ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। और उसी समाजवादी संगठन का पुनर्गठन करने वाले और हिन्दू धर्म में अपनी आस्था के लिये प्रसिद्ध "पन्डितजी" चन्द्रशेखर "आज़ाद" जिस दिन इस संसार से "आज़ाद" हुए उस दिन पुलिस मुठभेड से ठीक पहले वे भगतसिंह की जान बचाने की गरज से ही जगह-जगह अपनी सायकिल दौड़ा रहे थे। और तो और, जिन लाला लाजपत राय की मौत का बदला भगतसिंह ने लिया और हँसते हँसते फ़ाँसी चढ़े वे पंजाब केसरी कोई नास्तिक न होकर आर्य समाज और हिन्दू महासभा से सम्बद्ध थे।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला |
मैडम भीकाजी कामा |
बलप्रयोग से बचने की बात "काल्पनिक" अहिंसा है। हमारे नये आन्दोलन की प्रेरणा गुरु गोविन्द सिंह, शिवाजी, कमाल पाशा, वाशिंगटन, लाफ़ायत, गैरीबाल्डी, रज़ा खाँ और लेनिन हैं। ~ भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त (दिल्ली सेशंस कोर्ट का 8 जून 1929 का बयान)* और अब अंतिम बात: भगतसिंह के पहले दोज़ख़ और फिर नर्क में जाने की बात कोई और आस्तिक या नास्तिक नहीं कर रहा है, वह तो आप कर रहे हैं। मैंने किसी आस्तिक या नास्तिक (धर्मविरोधी ऐक्सक्लूडिड) के ब्लॉग पर भगतसिंह के नर्क या दोज़ख जाने का वाक्यांश नहीं देखा। यह बात पहली बार आपके ब्लॉग पर ही देखी है। क्या आप स्पष्ट बतायेंगे कि आपसे पहले किस आस्तिक ने एक क्रांतिकारी के लिये ऐसी बात कही थी? आज़ाद ने, महामना ने, पंजाब केसरी ने, टिळक ने, विनोबा ने, गांधी ने या खान अब्दुल गफ्फार खाँ ने? आपने अपने आलेख का जो शीर्षक (शहीद भगत सिंह दोज़ख में?) दिया है वह आस्तिकों और नास्तिकों के साथ-साथ शहीदे-आज़म एवम् अन्य क्रांतिकारियों और सम्पूर्ण भारत राष्ट्र के लिये भी सम्माननीय नहीं है। मैं नहीं जानता कि आपका प्रयोजन क्या था लेकिन यह स्पष्ट है कि एक द्वेषपूर्ण शीर्षक में सरदार भगतसिंह का नाम जोड़ना सही नहीं है।
पंजाब केसरी के घाव |
वन्दे मातरम्!
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सरदार भगत सिंह - कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
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- हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में भगत सिंह का नाम "रणजीत" था। कानपुर के "प्रताप" में वे "बलवंत सिंह" के नाम से तथा दिल्ली के "अर्जुन" में "अर्जुन सिंह" के नाम से लिखते थे।
- शहीद भगत सिंह ने जेल में रहते हुए अपने पिता से लोकमान्य टिळक की "गीता रहस्य" और नेपोलियन की जीवनी मंगवायी थीं।
- शहीद भगत सिंह संग्रहालय में आज भी भगतसिंह से संबन्धित अन्य बहुत सी चीज़ों के साथ प्रथम लाहौर षडयंत्र काण्ड की एक प्रति, भगतसिंह की हस्तलिखित पंक्तियाँ, सॉंडर्स काण्ड से सम्बन्धित सामान और नृसिंहदेव शास्त्री की भगतसिंह द्वारा हस्ताक्षरित गीता की प्रति भी उपलब्ध है।
- महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर भगतसिंह ने 1921 में स्कूल छोड़ दिया।
- भगतसिंह ने लाहौर में 'नौजवान भारत सभा' का गठन किया था।
- लाहौर में लाला लाजपत राय के 'पंजाब नेशनल कॉलेज' में सरदार भगतसिंह यशपाल, भगवतीचरण वोहरा, सुखदेव, तीर्थराम, झण्डासिंह आदि क्रांतिकारियों से मिले।
- लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक में अध्यक्ष दुर्गा भाभी स्वयं ही पुलिस अधीक्षक जेए स्कॉट को मारने का काम लेना चाहती थीं परंतु अन्य क्रांतिकारियों ने यह काम उन्हें देना स्वीकार नहीं किया।
- मुकद्दमे के 457 गवाहों में से पाँच शहीदत्रयी के पूर्व-साथी थे: जय गोपाल, फणीन्द्र नाथ घोष, मनमोहन बनर्जी, हंसराज वोहरा, और ललित मुखर्जी।
- बाद में क्रांतिकारी योगेन्द्र शुक्ल के भतीजे और क्रांतिकारी वैकुण्ठ शुक्ल (1907–1934) ने फ़णीन्द्रनाथ घोष की हत्या करके मृत्युदण्ड का वरण किया।
- मोंटगोमरी के पुलिस प्रमुख खान बहादुर अब्दुल अज़ीज़ के अनुसार नौजवान भारत सभा के बाबू सिंह ने भगत सिंह के खिलाफ़ गवाही देने के लिये 1,000 रुपये की मांग की थी।
- मुकद्दमे के पाँच अभियुक्तों को बरी किया गया था: आज्ञा राम, सुरेन्द्र पाण्डेय, अजय घोष, जतीन्द्र नाथ सान्याल और देसराज।
- प्रेम दत्त और कुन्दन लाल को क्रमशः पाँच व सात वर्ष का कारावास हुआ। किशोरीलाल, महाबीर सिंह, बिजोय कुमार सिन्हा, शिव वर्मा, गया प्रसाद, जयदेव कपूर, और कमलनाथ तिवारी को आजीवन कारावास की सज़ा हुई।
- 300 पृष्ठ के निर्णय में शहीदत्रयी को मृत्युदण्ड मिला और बटुकेश्वर दत्त को पहले ही आजीवन कारावास हुआ था।
- सुखदेव ने गांधी जी को एक खुला पत्र लिखा जिसे उनके भाई मथुरादास ने महादेव देसाई को पहुँचाया। गांधी जी ने सुखदेव की इच्छा के अनुसार उस पत्र का उत्तर एक जनसभा में दिया था।
- मथुरादास थापर का विश्वास था कि क्रांतिकारियों का साथी और हिन्दी लेखक यशपाल एक पुलिस मुखबिर था।
- यशपाल ने अपने संस्मरण में मुखबिरी के शक़ पर चुपके से भगवतीचरण वोहरा के सामान की तलाशी लेने की बात कही है और आज़ाद की मृत्यु के बाद अपने को संगठन का चीफ़ बताया है।
- सरदार भगतसिंह से केवल एक वर्ष बड़े महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद उनके संरक्षक और प्रगाढ़ मित्र बन गये थे। लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिये सुखदेव व राजगुरु के साथ किया गया 'सांडर्स हत्याकाण्ड' उन्हीं के निर्देशन और संचालन में बना संयुक्त कार्यक्रम था।
- भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त द्वारा 8 अप्रैल 1929 को किया गया असेंबली बम काण्ड भी चन्द्रशेखर आज़ाद की अध्यक्षता में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (पहले "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन") के तत्वावधान में ही हुआ।
- चन्द्रशेखर आज़ाद असेम्बली में बम फ़ेंकने के पक्ष में नहीं थे परंतु HRSA के सेनापति होने के बावजूद उन्होंने अपने साथियों की इच्छा को माना। तब भी वे बम फ़ेंककर गिरफ़्तार हो जाने के विरोधी रहे और असेम्बली के बाहर कार लेकर क्रांतिकारियों का इंतज़ार भी करते रहे थे। काश उनके साथी उनकी बात मान लेते!
- चन्द्रशेखर आज़ाद ने भगतसिंह को जेल से छुड़ाने की योजना भी बनाई जो भगवतीचरण वोहरा की असमय मृत्यु हो जाने के कारण असफल रही।
- चन्द्रशेखर आज़ाद के अनुरोध पर इन्हीं क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा ने 'दि फिलॉसफी ऑफ़ बम' आलेख तैयार किया था।
- "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन" के संस्थापक पण्डित रामप्रसाद "बिस्मिल" लिखित "मेरा रंग दे बसंती चोला" सरदार भगतसिंह का प्रिय गीत था।
- तीनों क्रांतिकारियों की जान बचाने के लिये नेताजी बोस, पंडित नेहरू, महामना जैसे नेता लगातार प्रयास कर रहे थे।
- अपने वकील प्राणनाथ मेहता से अंतिम मुलाक़ात में अपनी इच्छा पूछे जाने पर भगत सिंह ने कहा था, "मैं इस देश में पुनर्जन्म लेना चाहता हूँ ताकि (इसकी) सेवा कर सकूँ।2" साथ ही उन्होंने पण्डित नेहरू और नेताजी बोस का धन्यवाद भी दिया।
- अपने साथियों के बचाने के प्रयास में सब ओर से निराश होकर 27 फरवरी 1931 को चन्द्रशेखर "आज़ाद" इलाहाबाद में "आनन्द भवन" गये थे और वहाँ से निकलने के बाद एक मुखबिर की निशानदेही पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया था। उसी दिन आज़ाद इस दुनिया से आज़ाद हो गये थे। इस प्रकार वे भगतसिंह से पहले ही शहीद हो गये। ऐसा लगता है कि उनके देहावसान पर क्रांतिकारियों के पक्ष में उमड़ी जन-भावनाओं को देखकर ही ब्रिटिश प्रशासन ने शहीद-त्रयी की फ़ांसी समय से पहले देने का निर्णय लिया था।
मानव जीवन की पवित्रता के प्रति हमारी पूर्ण श्रद्धा है, हम मानव जीवन को पवित्र मानते हैं ...3[समाप्त]
~ सरदार भगतसिंह
1मार्टिर - कुलदीप नय्यर [कम्युनिस्ट विचारों के उलट, भारतीय क्रांतिकारी सदैव व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक रहे हैं। ब्रिटिश शासन से उनकी लडाई में राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ मानसिक और वैचारिक स्वतंत्रता की बात भी प्रमुख थी।]
2मार्टिर - कुलदीप नय्यर [ध्यान दीजिये, भगतसिंह अपने लिये पुनर्जन्म की बात कर रहे हैं, उसका विरोध नहीं, उनके सामान में गीता मौजूद है, कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो नहीं।]
3शहीद भगत सिंह: क्रांति में एक प्रयोग - कुलदीप नय्यर (मानव-रक्त से सनी कम्युनिस्ट क्रांतियों के विपरीत भगत सिंह मानव जीवन की पवित्रता के प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं।)
[मुद्रित सामग्री विभिन्न स्रोतों से देशभक्त मित्रों की सहायता से साभार ली गयी है। पत्रों के चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: FDC Photos by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* शहीदों को तो बख्श दो
* भगतसिंह के घर की तीर्थयात्रा
* जेल में गीता मांगी थी भगतसिंह ने
* The making of the revolutionary
* महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद"
* जिन्होंने समाजवादी गणतंत्र का स्वप्न देखा
* काकोरी काण्ड
* The Trial of Bhagat Singh - India Law Journal
* Partial list of people executed by British India