Sunday, October 11, 2009

लित्तू भाई - गदा का रहस्य [कहानी - अन्तिम किस्त]

भोले-भाले लित्तू भाई पर ह्त्या का इल्जाम? न बाबा न! लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये:भाग १; भाग २; भाग ३; भाग ४; एवं भाग ५ और अब, आगे की कहानी:]
भाभी ने यह भी बताया कि भारतीय समुदाय में दबे ढंके रूप में और स्थानीय अखबारों में खोजी पत्रकारिता के रूप में लित्तू भाई के कुछ गढ़े मुर्दों को उखाड़ने का प्रयास भी काफी जोशो-खरोश से चल रहा था।

पिट्सबर्ग में एकाध दिन और रूककर मैं वापस चला आया और जिंदगी फिर से रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गयी। कभी-कभार भोले-भाले से लित्तू भाई का रोता हुआ सा चेहरा याद आ जाता, कभी उनकी शेरो-शायरी। मैंने उनके घर में मिली बड़ी-बड़ी हस्तियों को भी याद किया और मन ही मन उस भारतीय छात्रा की तकलीफ़ को भी महसूस किया। इतना सब होने पर भी, जिन्दगी की चाल में कोई गतिरोध नहीं आया। काम-काज, लिखना-पढ़ना सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहा।

फिर एक दिन स्मार्ट इंडियन डॉट कॉम की तरफ से पिट्सबर्ग के मंदिरों और भारतीय समुदाय पर कुछ लिखने का प्रस्ताव आया तो मैंने एक सप्ताहांत में पिट्सबर्ग जाने का कार्यक्रम बनाया। किसी परिचित को इस यात्रा के बारे में नहीं बताया ताकि बिना किसी व्यवधान के अपना काम जल्दी से निबटाकर वापस आ जाऊं।

सुबह को कार्नेगी पुस्तकालय पहुँचकर जल्दी से वहाँ के अभिलेखागार के अखबारों में डुबकी लगाई और भारत, भारतीय और मंदिरों से सम्बंधित अखबार चुनकर उनकी फोटोस्टेट कॉपी करके इकट्ठा करता रहा ताकि अपने साथ ले जाकर फ़ुर्सत से एक खोजपरक आलेख लिख सकूं। [यह बात अलग है कि छपने से पहले सम्पादकों ने आलेख में से सारी खोज सेंसर कर दी]

सुबह की फ्लाईट से आया था, नाश्ता भी नहीं किया था। दोपहर होने तक तेज़ भूख लगने लगी। सोचा कि पुस्तकालय के जलपान गृह में बैठकर कुछ खा लेता हूँ और अब तक जितना काम हुआ है उतनी क्लिपिंग्स को जल्दी से साथ-साथ पढ़कर कुछ नोट्स भी बना लूंगा। दो कागजों पर टिप्पणियाँ लिखने के बाद तीसरा कागज़ खोला ही था कि किसी ने कंधे पर धौल जमाकर कहा, "चश्मा कब से लग गया हीरो? पहले कह देते तो हम लिमुजिन लेकर आ जाते हवाई अड्डे पर!"

मैंने अचकचा कर मुँह उठाकर देखा तो एक बिज़नेस सूट में लित्तू भाई को खड़े पाया। वही सरलता, वही मुस्कराहट। फ़र्क बस इतना था कि इस बार बाल काले रंगे हुए और बड़े करीने से कढे हुए थे। वैसे सूट उन पर बहुत फ़ब रहा था। मैंने आदर में खड़े होकर उन्हें सामने वाली कुर्सी पर बैठने को कहा और फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया, मैं खाता रहा और वे एक ठंडा पेय पीते रहे। मैंने उनकी जेल-यात्रा की बात ज़ुबां पर न लाने के लिए विशेष प्रयास किया मगर बाद में उन्होंने ही बात शुरू की।

"तुम्हारी उस गदा ने तो मुझे घातक इंजेक्शन दिलाने में कोई कसर नहीं छोडी थी।"

"अरे, क्या बात करते हैं लित्तू भाई? ऐसा क्या हो गया?" मैंने अनजान बनते हुए कहा।

लित्तू भाई ने बताया कि उस दिन उनके फेंकने के बाद किसी हत्यारे ने कूड़ेदान से गदा उठाकर उनकी एक पूर्व-कर्मचारी की ह्त्या कर दी और पुलिस ने गलती से उन्हें फंसा दिया। न तो गदा पर उनकी उँगलियों के निशान थे और न ही कोई चश्मदीद गवाह, पर पुलिस तो पुलिस है। हत्यारा ढूँढने की अपनी नाकामी के चलते उन्हें लपेटती रही। बहुत परेशानी हुई मगर उनका वकील बहुत ही प्रभावी था।

"आखिर में मैं बेदाग़ बच गया... पिछले महीने ही छूटा हूँ। मगर इस घटना से दोस्त-दुश्मन का अंतर पता लग गया।"

"..."

"जो लोग दिन रात मेरे टुकड़े तोड़ते थे, उन्होंने ही मेरे खिलाफ माहौल बनाया, भगवान उन्हें उनके कर्मों का दण्ड अवश्य देगा। कई लोगों ने तो कहा कि मैंने पहले भी बहुत से बलात्कार और हत्याएं की हैं।"

"अंत भला तो सब भला! उन अज्ञानियों को माफ़ भी कर दीजिये अब!" मैंने माहौल की बोझिलता को कम करने का प्रयास किया, " ... मगर ये कुरते पजामे से टाई-शाई तक? बात क्या है?"

"अरे भैया, अच्छे दिखना चाहिए वरना पुलिस पकड़ लेती है" वे अपने पुराने स्वाभाविक अंदाज़ में हँसे। मानो बदली छँट गयी हो और सूरज निकल आया हो। थोड़ी बातचीत और एकाध काव्य के बाद उन्होंने उठने का उपक्रम किया।

"काम है, निकलता हूँ, फिर मिलेंगे" उन्होंने मुझसे विदा ली और चलते चलते मुस्कुराकर कहा, "हाँ, मगर ग्रंथों की बात सही है, सत्यमेव जयते!"

मैंने उन्हें गले लगकर विदा किया और उनके इमारत से बाहर होने तक खड़ा-खड़ा उन्हें देखता रहा। कितना कुछ सहा होगा इस आदमी ने। सारी दुनिया के काम आने वाले आदमी ने इतना अन्याय अकेले सहा, अगर शादी की होती तो शायद उनकी पत्नी तो साथ खड़ी होती उनके बचाव के लिए। उनके बाहर निकलते ही मैं खुशी-खुशी बाकी अखबार देखने बैठ गया। दस साल पुरानी अगली खबर की सुर्खी थी, "अपनी पत्नी का सर कुचलनेवाला निर्मम हत्यारा ललित कुमार सबूतों के अभाव में बाइज्ज़त बरी।"

तब से आज तक जब भी किसी को "सत्यमेव जयते" कहते सुनता हूँ लित्तू भाई, उनकी गदा और अंधा कानून याद आ जाते हैं।

[समाप्त]

Tuesday, October 6, 2009

लित्तू भाई [कहानी भाग ५]

[नोट: देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. पहले सोचा था कि लित्तू भाई की कहानी इस कड़ी में समाप्त हो जायेगी मगर लिखना शुरू किया तो लगा कि मुझे एक बैठक और लगानी पड़ेगी, मगर इस बार का व्यवधान लंबा नहीं होगा, इस बात का वादा है इसलिए विश्वास से कह रहा हूँ कि "अगले अंक में समाप्य."
लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये:
भाग १; भाग २; भाग ३ एवं भाग ४ और अब, आगे की कहानी:]

कई वर्ष पहले जिस दिन मैंने लित्तू भाई और मित्रों से विदा लेकर पिट्सबर्ग छोड़ा था उसके कुछ दिन बाद मेरे पड़ोस में भारतीय मूल की एक छात्रा का शव मिला था। पड़ोसियों द्वारा एक अपार्टमेन्ट से दुर्गन्ध आने की शिकायत पर जब प्रबंधन ने उस अपार्टमेन्ट में रहने वाली छात्रा से संपर्क करने की कोशिश की तो असफल रहे। एक कर्मचारी ने आकर दोहरी चाबी से ताला खोला तो दरवाज़े के पास ही उस युवती का मृत शरीर पाया। ऐसा लगता था जैसे मृत्यु से पहले वहां काफी संघर्ष हुआ होगा. शराब की एक बोतल मेज़ पर रखी थी। एक गिलास मेज़ पर रखा था और एक फर्श पर टूटा हुआ पडा था। युवती का सर फटा हुआ था और फर्श पर जमे हुए खून के साथ ही एक भारतीय गदा भी पडी हुई थी।

पुलिस की जांच पड़ताल के दौरान अपार्टमेन्ट के कैमरे से यह पता लगा कि उस दिन दोपहर में केवल एक बाहरी व्यक्ति उस परिसर में आया था और वह भी एक बार नहीं बल्कि दो बार। लडकी की मृत्यू का समय और उसकी दूसरी आगत का समय लगभग एक ही था। आगंतुक का चेहरा साफ़ नहीं दिखा मगर बिखरे बालों और ढीले ढाले कपडों से वह कोई बेघर नशेडी जैसा मालूम होता था। दूसरी बार उसके हाथ में वह गदा भी थी जो घटनास्थल से बरामद हुई थी। हत्यारे को जल्दी पकड़ने के लिए भारतीय समुदाय का भी काफी दवाब था। प्रशासन का भी प्रयास था कि जल्दी से ह्त्या के कारणों का खुलासा करके यह निश्चित किया जाए कि यह एक नस्लभेदी ह्त्या नहीं थी। स्थानीय मीडिया ने इस घटना को काफी कवरेज़ दिया था और दद्दू और भाभी भी इन ख़बरों को बहुत ध्यान से देखते रहे थे।

पुलिस के पास गदा की भारतीयता और सुरक्षा कैमरा की धुंधली तस्वीर के अलावा कोई भी इशारा नहीं था सो उन्होंने छात्रा के परिचितों से मिलना शुरू किया। इसी सिलसिले में यह पता लगा कि छात्रा रात और सप्ताहांत में जिस पेट्रोल पम्प पर काम करती थी उसके मालिक श्री ललित कुमार ने एक सप्ताह पहले ही उसे एक कड़वी बहस के बाद काम से निकाला था। यह ललित कुमार और कोई नहीं बल्कि हमारे लित्तू भाई ही थे। उनसे मुलाक़ात करते ही जांच अधिकारी को यह यकीन हो गया कि सुरक्षा कैमरा में दिखने वाला आदमी वही है जो उसके सामने खड़ा है। कुछ ही दिनों में संदेह के आधार पर अधिक जानकारी के लिए लित्तू भाई को अन्दर कर दिया गया।

इसके साथ ही पिट्सबर्ग का भारतीय समुदाय दो दलों में बाँट गया। एक तो वे जो लित्तू भाई को हत्याकांड में जबरिया फंसाए जाने के धुर विरोधी थे और दूसरे वे जिन्हें लित्तू भाई के रूप में भेड़ की खाल में छिपा एक भेड़िया नज़र आ रहा था। बहुत से लोगों का विश्वास था की जब लित्तू भाई द्वारा गदा कूड़े में फेंक दिये जाने के बाद किसी व्यक्ति ने उसे उठाकर प्रयोग किया होगा। इत्तेफ़ाक़ से मृतका लित्तू भाई की पूर्व-परिचित निकली। वहीं ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो यह मानने लगे थे कि इस एक घटना से पहले भी ऐसी या मिलती-जुलती घटनाओं में लित्तू भाई जैसे सफेदपोश दरिंदों का हाथ हो सकता है।

मैंने भाभी की बातों को ध्यान से सुना मगर इस पर अपनी कोई भी राय नहीं बना सका। जब मैं लित्तू भाई से आखिरी बार मिला था तो उस दिन वे आम दिनों से काफी फर्क लग रहे थे। मगर फ़िर भी मेरे दिल ने उन्हें हत्यारा मानने से इनकार कर दिया। भाभी ने बताया कि मुकदमा अभी भी चल रहा था।


[क्रमशः]

Monday, September 21, 2009

जी-२० पिट्सबर्ग में [इस्पात नगरी से - १७]

"इस्पात नगरी से" नामक शृंखला में मैं पिट्सबर्ग की छोटी-छोटी झलकियों की मार्फ़त यहाँ के परिवेश और सामयिक घटनाओं की जानकारी देता रहा हूँ । इस शृंखला की पिछली कडी में मैंने अपनी डैलस यात्रा का ज़िक्र किया था। इस समय कोई विशेष बात नहीं है। मतलब यह की बात सिर्फ़ विशेष न होकर अति-विशेष (VIP) है। क्यों न हो? विश्व की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के भाग्य-विधाता एक साथ इस छोटे से नगर में इकट्ठे जो हो रहे हैं। जी हाँ, आगामी G-२० सम्मलेन २४ और पच्चीस सितम्बर २००९ को (इसी सप्ताह) इस्पात नगरी (Pittsburgh) में ही हो रहा है। बहुत से पत्रकार तो पिछले हफ्ते से ही यहाँ डेरा डाले हुए बैठे हैं। काफी लोगों के सवाल थे कि न्यू यार्क, वॉशिंगटन, लोस अन्जेलिस आदि बड़े बड़े नगरों के होते हुए इतनी महत्वपूर्ण सभा इस छोटी सी नगरी में क्यों हो रही है? राष्ट्रपति ओबामा के अनुसार ईसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस नगर में अद्वितीय अंतर्राष्ट्रीय विविधता के साथ-साथ हर मुश्किल वक्त से सफलतापूर्वक उभर आने की जिजीविषा और जीवट भी है। यदि आप या आपके कोई परिचित यहाँ तशरीफ़ ला रहे हों तो अपना (या उनका) कार्यक्रम मुझे बताने की कृपा करें ताकि मैं आपकी खातिरदारी के लिए तैयार रहूँ। धन्यवाद और शुभ यात्रा! इस नगरी ने अपने सीमित संसाधनों से विश्व का स्वागत करने की तैय्यारी तो शुरू कर दी है। आईये आपको कुछ झलकियाँ दिखाते हैं जी-२० की तैयारी की, चित्रों के सहारे: George Washington welcomes the visitors at Pittsburgh International Airport पिट्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आगंतुकों का स्वागत करते हुए जॉर्ज वॉशिंगटन की आदमकद प्रतिमा Pittsburgh welcomes you on the ocassion of G-20 summit पिट्सबर्ग तैयार है स्वागत के लिए Swagatam - Welcome message in Hindi हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं में स्वागत संदेश G-20 in local magazines स्थानीय पत्रिकाओं में जी-२० की चर्चा (मनमोहन सिंह के चित्र के साथ) Why Pittsburgh? Because Pittsburgh is the city of the future पिट्सबर्ग ही क्यों? भविष्य का नगर! पिट्सबर्ग में आपका स्वागत है, हिन्दी में देखें यूट्यूब पर Labels: G-20, international summit, Pittsburgh, September 24, 2009, Pennsylvania, USA

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Photo Courtesy: Anurag Sharma]