Wednesday, November 10, 2010

टोक्यो टॉवर

टोक्यो टॉवर की छत्रछया में
1958 में बना टोक्यो टॉवर विश्वप्रसिद्ध आयफ़ैल टॉवर से न केवल अधिक ऊंचा है बल्कि इसमें काम आने वाले कुल इस्पात का भार (4000 टन) आयफ़ैल टॉवर के भार (7000+) से कहीं कम है। कोरियन युद्ध में मार खाये अमेरिकी टैंकों के कबाड़ से पुनर्प्राप्त किये इस्पात से बने इस स्तम्भ की नींव जून 1957 में रखी गयी थी। 14 अक्टूबर 1958 में यह विश्व का सबसे ऊँचा स्तम्भ बन गया। उसके बाद संसार में कई बड़ी-इमारतें अस्तित्व में आईं परंतु यह स्तम्भ आज भी विश्व के सबसे ऊँचे स्वतंत्र स्तम्भ के रूप में गौरवांवित है।

रात्रि में टोक्यो टॉवर का सौन्दर्य
इस स्तम्भ का मुख्य उपयोग रेडिओ और टी वी के प्रसारण के लिये होता है। परंतु साथ ही टोक्यो के मिनातो-कू के प्रसिद्ध ज़ोजोजी मन्दिर परिसर के निकट स्थित यह स्तम्भ एक बड़ा पर्यटक आकर्षण भी है। इसकी स्थापना से आज तक लगभग 15 करोड़ पर्यटक यहाँ आ चुके हैं।

टोक्यो टॉवर के आधार पर एक चार मंज़िला भवन है जिसमें संग्रहालय, अल्पाहार स्थल, बाल-झूले और जापान यात्रा के स्मृतिचिन्ह बेचने वाली अनेकों दुकानें हैं। पर्यटक एक लिफ्ट के द्वारा स्तम्भ के ऊपर बनी दोमंज़िला दर्शनी-ड्योढी तक पहुँचते हैं जहाँ से टोक्यो नगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यदि आपकी किस्मत से आकाश साफ है तो फिर आप फूजी शिखर का दर्शन टोक्यो से ही कर सकते हैं। इस दर्शक दीर्घा के फर्श में दो जगह शीशे के ब्लॉक लगे हैं ताकि आप अपने पांव के डेढ़ सौ मीटर तले ज़मीन खिसकती हुई देख कर अपने रोंगटे खडे कर सकें। वैसे यहाँ से एक और टिकट लेकर एक और ऊंची ड्योढी तक जाया जा सकता है। हालांकि हम जैसे कमज़ोर दिल वालों के लिये यहाँ से "ऊपर जाने" की कोई आवश्यकता नज़र नहीं आयी।

टोक्यो टॉवर
जापान के हर कोने और गली कूचे की तरह इस टॉवर के ऊपर बनी दर्शक ड्योढी में भी एक छोटा सा सुन्दर मन्दिर बना हुआ है। यदि यह विश्व के सबसे ऊंचे मन्दिरों में से एक हो तो कोई आश्चर्य नहीं। क्रिसमस के मद्देनज़र स्तम्भ की तलहटी में आजकल वहाँ एक क्रिसमस-पल्लव भी लगाया जा रहा है।

सलीका और सौन्दर्यबोध जापानियों के रक्त में रचा बसा है। इसीलिये इस्पात का यह विशाल खम्भा भी 28000 लिटर लाल और श्वेत रंग में रंगकर उन्होने इसकी सुन्दरता को कई गुणा बढा दिया है।

टोक्यो टॉवर की दर्शन ड्योढी का लघु मन्दिर् 

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Tokyo Tower Photos: Anurag Sharma]

Thursday, November 4, 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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साल की सबसे अंधेरी रात में*
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

एक चंदा का ही तो अवकाश है 
आकाश में तारों का भी तो वास है 
और जगमग दीप हम रख दें कई

बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
भूल कर के घाव उन घातों के हम
समझें सभी तकरार को बीती हुई

कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगड़े सभी
प्रेम की गढ़ लें इमारत इक नई

(* कार्तिक अमावस्या)

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चित्र एवं कविता: अनुराग शर्मा 
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सम्बन्धित कड़ियाँ
* शुभ दीपावली - बहुत बधाई और एक प्रश्न
* हमारे पर्व और त्योहार

Sunday, October 31, 2010

पतझड़ की सुन्दरता [इस्पात नगरी से - 32]

पतझड़ का मौसम आ चुका है ठंड की चिलगोज़ियाँ शुरू होने लगी हैं। हर साल की तरह पर्णहीन वृक्षों से छूकर हवा साँय-साँय और भाँय-भाँय की अजीब-आवाज़ें निकालकर कमज़ोर दिल वालों के मन में एक दहशत सी उत्पन्न कर रही है। प्रेतों के उत्सव के लिये बिल्कुल सही समय है। कुछ लोगों के लिये पतझड़ का अर्थ ही निराशा या दुःख है परंतु पतझड़ की एक अपनी सुन्दरता भी है। संस्कृत कवियों का प्रिय मौसम है पतझड़। आप कहेंगे कि वह तो वसंत है। हाँ है तो मगर वसंत तो पतझड़ ही हुआ न!

वसंत = वस+अंत = (वृक्षों के) वस्त्रों का गिरना
तो फिर वसंत क्या है? कुसुमाकर = फूलों का खिलना, बहार

तो निष्कर्ष यह निकला कि पतझड़ वसंत है और वसंत बहार है। दूसरे शब्दों में पतझड़ ही बहार है। तो आइये देखते हैं पतझड़ की बहार के रंग - चित्रों के द्वारा


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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
मेरे आँगन में क्वान्ज़न चेरी ब्लोसम के रंग
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा - All photographs by Anurag Sharma]