* दंगा *
प्यार देते तो प्यार मिल जाता
कोई बेबस दुत्कार क्यूं पाता
रहनुमा राह पर चले होते
तो दरोगा न रौब दिखलाता
मेरा रामू भी जी रहा होता
तेरा जावेद भी खो नहीं जाता
सर से साया ही उठ गया जिनके
दिल से फिर खौफ अब कहाँ जाता
बच्चे भूखे ही सो गए थक कर
अम्मी होती तो दूध मिल जाता
जिनके माँ बाप छीने पिछली बार
रहम इस बार उनको क्यों आता?
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शान्ति, पीडितों को सहनशक्ति, नेताओं को इच्छाशक्ति, सुरक्षा एजेंसियों को भरपूर शक्ति और निर्दोषों का खून बहाने वाले दरिंदों को माकूल सज़ा दे यही इच्छा है मेरी!
कवि हैं न! सो कविता से कह दे रहे हैं। आम हम जैसे को तो गुस्सा ही आ सकता है आतन्की प्रकरण पर।
ReplyDeleteआप की पीड़ा आप की रचना में बहुत गहरी उभरी है-
ReplyDeleteमेरा रामू भी जी रहा होता
तेरा जावेद भी खो नहीं जाता।
बहुत सुन्दर रचना है।
सच है संयम की आज बहुत जरूरत है।
बहुत दर्द झलकता हे आप की कविता मे,ओर आम आदमी तो समझता हे, यह राजनिति हे,ओर सभी एक दुसरे के दुख मे भी शामिल हे,लेकिन इन नेताओ की भुख कब शांत होगी...
ReplyDeleteबच्चे भूखे ही सो गए थक कर
अम्मी होती तो दूध मिल जाता।
अब बच्चो को क्या पता अम्मी बेचारी कहा गई
धन्यवाद एक मार्मिक कविता के लिये
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शान्ति, पीडितों को सहनशक्ति, नेताओं को इच्छाशक्ति, सुरक्षा एजेंसिओं को भरपूर शक्ति और निर्दोषों का खून बहाने वाले दरिंदों को माकूल सज़ा दे यही इच्छा है मेरी!
ReplyDeleteआपकी इच्छा में मेरी इच्छा भी शामिल है|
bahut hi marmik aur vichar-manan ki rachna.
ReplyDeleteमेरा रामू भी जी रहा होता
ReplyDeleteतेरा जावेद भी खो नहीं जाता।
!!!!!
पहली बार आपका ब्लॉग पढने का सोभाग्य मिला
पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई
वास्तव में आतंकवाद आज एक ऐसी समस्या बन गयी है जिस का मुकाबला हम सब को धर्म और जात से परे जाकर मिलजुल कर काना होगा
मुझे यकीन है कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब हम आतंकवाद पर विजय पा लेंगे क्योंकि अभी आप जैसे अच्छे और उदार सोच वाले लोग मोजूद हैं, भले ही आज हमारी संख्या कम है लेकिन धीरे-धीरे ये बढेगी. इंशा अल्लाह
जिनके माँ बाप छीने पिछली बार
ReplyDeleteरहम इस बार उनको क्यों आता?
जिनके ये कृत्य हैं उनको रहम कर्म
से क्या लेना ? वो किसी के बहकाए
हुए दरिन्दे हैं ! जब तक उनको होश
आयेगा ! तब तक ना जाने कितने
राम और जावेद अनाथ हो चुके होंगे !
हे ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे !
विषय: अफसोसजनक....दुखद....निन्दनीय!!
ReplyDeleteरचना: बहुत भावपूर्ण है. अपनी बात कहने में पूर्ण सक्षम.
इंसानियत मर रही है | मैं जब भी इस तरह की
ReplyDeleteघटनाए और दुर्घटनाएं होती हैं तब २४ घंटे
का उपवास करता हूँ | मैं विवश हूँ ! कुछ नही
कर सकता ! कितनी विवश है इंसानियत ?
pida sabko hai.. bhagwaan kuchh logon ko sadbuddhhi de..
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