Tuesday, December 27, 2011

उत्सव की रोशनी और दिल का अँधेरा

क्रिसमस के अगले दिन हिमांक से नीचे के तापक्रम पर उसे देखा भोजन की जुगाड़ करते हुए। संसार के सबसे समृद्ध देश में वंचितों को देखकर यही ख्याल आता है कि संसार में मानवीय समस्यायें केवल इसीलिये हैं क्योंकि हमने उन्हें हल करने के प्रयास पूरे दिल से किये ही नहीं। नहीं जानता हूँ कि क्या करने से इस समस्या का उन्मूलन हो सकेगा। बस इतना ही जानता हूँ कि जो होना चाहिए वह किया नहीं जा रहा है। भाव अस्पष्ट हैं और इस बार भी रचना शायद काव्य की दृष्टि से ठीक न हो।

तख्ती सब कहती है
समां शाम का कितना प्यारा
डरता उत्सव से अँधियारा

रिश्ते भरकाते तो डर क्या
हो भले शून्य से नीचे पारा

शाम ढली उल्लास भी बढ़ा
ठिठुर रहा पर वह बेचारा

सैंटा मिलता हरिक माल में
ओझल रहा यही दुखियारा

सबको तो उपहार मिले पर
ये क्यों न प्रभु को प्यारा

बर्फ ने काली रात धवल की
चन्दा छिपा छिपा हर तारा

रजत परत सब ढंके हुए थे
कांपते उघड़ा वक़्त गुज़ारा

अगला दिन भी रहा उनींदा
अलसाया था हर घर द्वारा

सूरज की छुट्टी कूड़े में
बीन रहा भोजन भंडारा

29 comments:

  1. काव्यात्मकता से अधिक ज़रूरी होते हैं भाव और उन भावों को प्रकट करने हेतु संवेदना...वो सब यहाँ पर है.
    हम केवल अफ़सोस ही कर सकते हैं :-(

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    1. यह सच है प्रिय "तख्ती सब कहती है" लेकिन हम केवल हमारी संवेदना भाव ही व्यक्त कर सकते हैं !!

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  2. शनि महाराज से तो अपना दोस्ताना है. बहरहाल सन २०२१ का इंतज़ार हैं. न जाने हम कहाँ होंगे!

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  3. दुःख यही है कि हमारी संवेदनाओं का रथ अक्सर बिन पहियों का होता है...! जिस दिन संवेदनाएं, छोटे छोटे स्तर पर ही सही, मदद के लिए अपना हाथ औरों को देने लगेंगी सहर्ष , शायद समाधान हो जाएगा!
    सृजन भाव प्रेषित करने में सफल है!
    सादर!

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  4. वो कहते हैं ना कि कविता लिखी नहीं जाती, अपने आप आ जाती है? तो उसकी का जानदार उदाहरण है यह कविता। समझने की नहीं, अनुभव करने की बात है।

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  5. सूरज की छुट्टी कूड़े में
    बीन रहा भोजन भंडारा :( i wish ki aane wala saal us family ko thoda sukun de....

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  6. भाव अस्पष्ट हैं और इस बार भी रचना शायद काव्य की दृष्टि से ठीक न हो...
    बार बार यह लिखने का क्या मतलब है पहले तो ये समझाएं...
    समृद्ध और वंचितों के बीच की खाई हर देश में ऐसी ही है !
    नव वर्ष की पूर्व संध्या पर पिछले वर्ष नेशनल हैंडलूम के बाहर चाट खाते देखा एक बच्ची को सिर्फ एक फ्रॉक में भीख मांगते देख कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ था ...

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  7. वंचित चाहे गरीब देश के हों या समृद्द देश के, उनका दुःख एक सा है...मार्मिक कविता!

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  8. बर्फ ने काली रात धवल की
    चन्दा छिपा छिपा हर तारा
    यही कन्ट्रास्ट है हम सबके जीवन में, कि जब रात धवल हो तो चन्दा और हर तारा छुप जाता है।

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  9. बडी मार्मिक प्रस्तुति है।

    इस समस्या का उन्मूलन दान से भी कहीं अधिक भोग संयम पर निर्भर है।

    सम्पन्न जिनकी पहुंच सर्वाधिक संसाधनो तक है वे यदि इन संसाधनो का उपयोग पूर्ण संयम के साथ करे तो शायद कोई वंचित न रहे।

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  10. सचमुच बहुत दुखद है....इतने समृद्ध देश में भी किसी का भूखे पेट सोना...
    हृदयस्पर्शी रचना

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  11. बेघर के लिए तो क्या हिंदुस्तान , क्या अमेरिका ।
    इस कड़ाके की ठण्ड में कभी कभी एक अपराध बोध सा होता है , लोगों को फुटपाथ पर सोते दखकर ।
    लेकिन फिर कबीर का दोहा याद आ जाता है ।

    कविता में भाव व अभिव्यक्ति , दोनों अच्छे हैं ।

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  12. सैंटा मिलता हरिक माल में
    ओझल रहा यही दुखियारा ..

    बहुत खूब अनुराग जी ... विकसित देशों में भी ऐसी समस्याएं होती हैं ... चाहे कम ही क्यों न होँ ...

    आपको परवार सहित नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  13. भाव सर्वोपरि हैं ...और वह उत्कृष्ट हैं.

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  14. आदरणीय सुब्रमनियन जी ने शायद गलती से यह टिप्पणी यहां भी डाल दी है :)

    तख्ती कम से कम उनकी सम्पन्नता पे एक सवाल तो है ही !

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  15. आदरणीय सुब्रमनियन जी ने शायद गलती से यह टिप्पणी यहां भी डाल दी है :)

    तख्ती कम से कम उनकी सम्पन्नता पे एक सवाल तो है ही !

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  16. इंसान से इंसान का हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा! एक बार यह जज़्बा दिल में आए तो न्याय, प्रेम और भाईचारा अपनेआप समाज में पनपेगा॥

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  17. अक्सर ऐसे ख्याल मन में आते हैं... पता नहीं क्या हल है !

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  18. समय के साथ क्या हम वाकई इंसान बन सके हैं? सभ्य कहलाने का दंभ भरने वाले हम.

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  19. जब सब तरफ क्रिसमस के सोफ्ट,खूबसूरत और रूमानी गीत गाये जा रहे हैं वहाँ आपकी ये कविता बड़ी अच्छी लगी मुझे..एकदम हृदयस्पर्शी!!

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  20. मगर भगवान् को तो वही प्यारे होते हैं !

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  21. सचमुच! अपनी अपनी कोशिशें, अपने अपने हल।

    और हाँ!

    @भाव अस्पष्ट हैं और इस बार भी रचना शायद काव्य की दृष्टि से ठीक न हो...

    असहमति है मेरी।

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  22. आप सभी का आभार!

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  23. गरीबी , भुखमरी ,बदहाली आदि का एक ही चेहरा होता है..

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  24. जीवन की विसंगतियाँ हर जगह हैं-उत्सव अपनी खुशी के लिये मनाते हैं लोग,खुशियाँ बाँटना सब के बस में कहाँ !

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  25. एक ओर तो उत्सव जैसा है, दूसरी ओर फाँके हैं..

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  26. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  27. कितने कष्ट कितने दर्द हर जगह ....

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।