कहानी भविष्यवाणी में अब तक आपने पढ़ा कि पड़ोस में रहने वाली रूखे स्वभाव की डॉ रूपम गुप्ता उर्फ रूबी को घर खाली करने का नोटिस मिल चुका था। उनका प्रवास भी कानूनी नहीं कहा जा सकता था। समस्या यह थी कि परदेस में एक भारतीय को कानूनी अड़चन से कैसे निकाला जाय। रूबी की व्यंग्योक्तियाँ और क्रूर कटाक्ष किसी को पसंद नहीं थे, फिर भी हमने प्रयास करने की सोची। रूबी ने अपनी नौकरी छूटने और बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि उसके घर हमारे आने के बारे में उसे शंख चक्र गदा पद्मधारी भगवान् ने इत्तला दी थी। बहकी बहकी बातों के बीच वह कहती रही कि भगवान् ने उसे बताया है यहाँ गैरकानूनी ढंग से रहने पर भी उसे कोई हानि नहीं होनी है जबकि भारत के समय-क्षेत्र में प्रवेश करते ही वह मर जायेगी। उसके हित के लिए हमने भी एक खेल खेलने की सोची।(चित्र व कथा: अनुराग शर्मा)
भाग १ , भाग २ , भाग ३ ; अब आगे की कथा:
"अच्छा! लेकिन हमें तो आज उन्होंने यह बताया कि आप उनकी बात ठीक से समझ नहीं पा रही हैं। जैसा कि आपको पता है, उन्होंने ही हमें यहाँ आकर आपकी सहायता करने को कहा है।"
"मुझे तो ऐसा कुछ बोले नहीं।"
"बोले तो थे मगर आप समझीं ही नहीं। उन्होंने आपको कई बार बताने की कोशिश की कि वीसा के लिए पुलिस द्वारा न पकड़ा जाना एक सामान्य बात है, लेकिन घर आखिर घर ही होता है। ऐसा न होता तो अपार्टमेंट मैनेजमेंट आपको निकालने का नोटिस ही क्यों भेजता? भगवान् आपको बेघर थोड़ी करना चाहेंगे।"
"आपकी बात गलत है। भगवान् ने ही इन्हें नोटिस भेजने को कहा। ये अपना अपार्टमेंट खाली करायेंगे तभी तो भगवान् मझे खुद आकर लेके जायेंगे।"
उसके आत्मविश्वास को देख मेरा माथा ठनका। खासकर खुद ले जाने की बात सुनकर। मैं जानना चाहता था कि कहीं वह कोई आत्मघाती गलती तो नहीं करने वाली। अगर उसे त्वरित मानसिक सहायता की ज़रुरत है तो उसमें देर नहीं होनी चाहिए थी।"
कैसे ले जायेंगे वे आपको?
"यहाँ से" उसने खिड़की की और इशारा करते हुए कहा।
"क्या?" मैं अवाक था, अगर यह खिड़की से कूदी तो कुछ भी नहीं बचने वाला।
"हाँ ..." मुझे खिड़की के पास ले जाकर उसने बड़े से पार्किंग लॉट के दूर के एक खंड को इंगित करके बताया कि भगवान् का विमान उसे लेने आने पर वहीं रुकेगा।
" ... यहाँ से उनका विमान आयेगा और मुझे अपने साथ ले जाएगा" वह तुनकी, "आपको विश्वास नहीं आया? आप तो कह रहे थे कि भगवान् आपसे भी बात करते हैं।"
"हाँ, बात भी करते हैं और आपको ले जाने की बात भी बताई थी। साथ ही यह भी बोले कि आपके बारे में उनके मन में एक दूसरा प्लान भी है।" मैंने भी एक पत्ता फेंका, "पूरी बात वे अगले सप्ताह तक ही बताएँगे।"
"मुझे भी उनकी बात ठीक से समझ नहीं आई थी ..." वह रुकी, फिर झिझकते हुए बोली, "मैं एमबीबीएस पीएचडी ज़रूर हूँ, लेकिन स्मार्ट बिलकुल नहीं हूँ। सीधी बात भी बड़ी देर से समझ आती है मुझे।"
"अच्छा!" मैंने अचम्भे का अभिनय क्या, "पढाई कहाँ से की थी आपने?"
कुछ देर वहां रुककर मैंने बातों बातों में उससे उसके बारे में सारी ज़रूरी जानकारी हासिल कर ली। रूबी ने पीएचडी तो फ्रांस में की थी लेकिन भारत में उसका मेडिकल कॉलेज संयोग से वही निकला जो रोनित का था। घर आकर मैंने सबसे पहले रोनित को फोन किया। मैं रूबी को जानता हूँ और वह मेरी पड़ोसन है, यह सुनकर रोनित को आश्चर्य हुआ। उसके हिसाब से तो रूबी का केस एकदम होपलेस था। वह रोनित से सीनियर थी इसलिए उन दोनों का व्यक्तिगत परिचय तो नहीं था लेकिन रूबी की मानसिक अस्थिरता सारे कॉलेज में मशहूर थी। रोनित के अनुसार रूबी से बुरी तरह पक गए प्रबंधन और फैकल्टी का सारा जोर उसे जल्दी से जल्दी डिग्री थमाकर बाहर का रास्ता दिखाने में था। स्थिति की गंभीरता को समझकर उसने अपने कोलेज के सभी पुराने संबंधों को खड़काकर रूबी के परिवार से सम्बंधित जानकारी जल्दी ही निकालकर मुझे देने का वायदा किया। फोन रखते ही मैंने इंटरनेट खंगालना शुरू कर दिया।
उसकी नौकरी में सहायता के उद्देश्य से देर रात जब तक मैंने इंटरनेट की सहायता से उसकी प्रोफेशनल प्रोफाइल और रिज्यूमे तैयार की, रोनित का फोन आया। उसने बताया कि उसे रूबी के परिवार की पूरी जानकारी मिल गयी थी। उसके माँ-बाप इस दुनिया में नहीं थे और इकलौती बहन तो फोन पर उसका नाम सुनते ही रोनित पर चढ़ बैठी. उसने तो फोन पर रूबी को अपनी बहन मानने से भी इनकार कर दिया और रोनित को चेतावनी दी कि दोबारा फोन आने पर पुलिस में जायेगी।
बस एक व्यक्ति है। नंबर मिल गया है लेकिन तुमसे बात किये बिना उसे फोन करना मैंने ठीक नहीं समझा। तुम चाहो तो अभी बात कर सकते हैं।
इसका कौन है वह?
"उसका पति है ... उनके संबंधों की ज़्यादा जानकारी नहीं मिली है, लेकिन यह पक्का है कि वे हैं पति-पत्नी" फिर कुछ रूककर बोला, " ... वैसे जब उसकी सगी बहन उसका नाम सुनते ही इतना भड़क गयी तो पति का भी क्या भरोसा।
"वह खुद भारत जाने का मतलब अपनी मौत बताती है। भारत में भरोसे का कोई संबंधी नज़र नहीं आता। यहाँ अगर नौकरी फिर से बन जाए तो सारा झंझट ही ख़त्म।" मैंने सुझाव दिया।
"हाँ, यही करके देखते हैं। वैसे तो बड़ी विशेषज्ञ है वह। दुनिया के सबसे बड़े जर्नल्स में छप चुकी है। भगवान् जाने, काम पर क्या तमाशा किया होगा।"
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