Tuesday, October 6, 2009

लित्तू भाई [कहानी भाग ५]

[नोट: देरी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. पहले सोचा था कि लित्तू भाई की कहानी इस कड़ी में समाप्त हो जायेगी मगर लिखना शुरू किया तो लगा कि मुझे एक बैठक और लगानी पड़ेगी, मगर इस बार का व्यवधान लंबा नहीं होगा, इस बात का वादा है इसलिए विश्वास से कह रहा हूँ कि "अगले अंक में समाप्य."
लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये:
भाग १; भाग २; भाग ३ एवं भाग ४ और अब, आगे की कहानी:]

कई वर्ष पहले जिस दिन मैंने लित्तू भाई और मित्रों से विदा लेकर पिट्सबर्ग छोड़ा था उसके कुछ दिन बाद मेरे पड़ोस में भारतीय मूल की एक छात्रा का शव मिला था। पड़ोसियों द्वारा एक अपार्टमेन्ट से दुर्गन्ध आने की शिकायत पर जब प्रबंधन ने उस अपार्टमेन्ट में रहने वाली छात्रा से संपर्क करने की कोशिश की तो असफल रहे। एक कर्मचारी ने आकर दोहरी चाबी से ताला खोला तो दरवाज़े के पास ही उस युवती का मृत शरीर पाया। ऐसा लगता था जैसे मृत्यु से पहले वहां काफी संघर्ष हुआ होगा. शराब की एक बोतल मेज़ पर रखी थी। एक गिलास मेज़ पर रखा था और एक फर्श पर टूटा हुआ पडा था। युवती का सर फटा हुआ था और फर्श पर जमे हुए खून के साथ ही एक भारतीय गदा भी पडी हुई थी।

पुलिस की जांच पड़ताल के दौरान अपार्टमेन्ट के कैमरे से यह पता लगा कि उस दिन दोपहर में केवल एक बाहरी व्यक्ति उस परिसर में आया था और वह भी एक बार नहीं बल्कि दो बार। लडकी की मृत्यू का समय और उसकी दूसरी आगत का समय लगभग एक ही था। आगंतुक का चेहरा साफ़ नहीं दिखा मगर बिखरे बालों और ढीले ढाले कपडों से वह कोई बेघर नशेडी जैसा मालूम होता था। दूसरी बार उसके हाथ में वह गदा भी थी जो घटनास्थल से बरामद हुई थी। हत्यारे को जल्दी पकड़ने के लिए भारतीय समुदाय का भी काफी दवाब था। प्रशासन का भी प्रयास था कि जल्दी से ह्त्या के कारणों का खुलासा करके यह निश्चित किया जाए कि यह एक नस्लभेदी ह्त्या नहीं थी। स्थानीय मीडिया ने इस घटना को काफी कवरेज़ दिया था और दद्दू और भाभी भी इन ख़बरों को बहुत ध्यान से देखते रहे थे।

पुलिस के पास गदा की भारतीयता और सुरक्षा कैमरा की धुंधली तस्वीर के अलावा कोई भी इशारा नहीं था सो उन्होंने छात्रा के परिचितों से मिलना शुरू किया। इसी सिलसिले में यह पता लगा कि छात्रा रात और सप्ताहांत में जिस पेट्रोल पम्प पर काम करती थी उसके मालिक श्री ललित कुमार ने एक सप्ताह पहले ही उसे एक कड़वी बहस के बाद काम से निकाला था। यह ललित कुमार और कोई नहीं बल्कि हमारे लित्तू भाई ही थे। उनसे मुलाक़ात करते ही जांच अधिकारी को यह यकीन हो गया कि सुरक्षा कैमरा में दिखने वाला आदमी वही है जो उसके सामने खड़ा है। कुछ ही दिनों में संदेह के आधार पर अधिक जानकारी के लिए लित्तू भाई को अन्दर कर दिया गया।

इसके साथ ही पिट्सबर्ग का भारतीय समुदाय दो दलों में बाँट गया। एक तो वे जो लित्तू भाई को हत्याकांड में जबरिया फंसाए जाने के धुर विरोधी थे और दूसरे वे जिन्हें लित्तू भाई के रूप में भेड़ की खाल में छिपा एक भेड़िया नज़र आ रहा था। बहुत से लोगों का विश्वास था की जब लित्तू भाई द्वारा गदा कूड़े में फेंक दिये जाने के बाद किसी व्यक्ति ने उसे उठाकर प्रयोग किया होगा। इत्तेफ़ाक़ से मृतका लित्तू भाई की पूर्व-परिचित निकली। वहीं ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो यह मानने लगे थे कि इस एक घटना से पहले भी ऐसी या मिलती-जुलती घटनाओं में लित्तू भाई जैसे सफेदपोश दरिंदों का हाथ हो सकता है।

मैंने भाभी की बातों को ध्यान से सुना मगर इस पर अपनी कोई भी राय नहीं बना सका। जब मैं लित्तू भाई से आखिरी बार मिला था तो उस दिन वे आम दिनों से काफी फर्क लग रहे थे। मगर फ़िर भी मेरे दिल ने उन्हें हत्यारा मानने से इनकार कर दिया। भाभी ने बताया कि मुकदमा अभी भी चल रहा था।


[क्रमशः]

Monday, September 21, 2009

जी-२० पिट्सबर्ग में [इस्पात नगरी से - १७]

"इस्पात नगरी से" नामक शृंखला में मैं पिट्सबर्ग की छोटी-छोटी झलकियों की मार्फ़त यहाँ के परिवेश और सामयिक घटनाओं की जानकारी देता रहा हूँ । इस शृंखला की पिछली कडी में मैंने अपनी डैलस यात्रा का ज़िक्र किया था। इस समय कोई विशेष बात नहीं है। मतलब यह की बात सिर्फ़ विशेष न होकर अति-विशेष (VIP) है। क्यों न हो? विश्व की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के भाग्य-विधाता एक साथ इस छोटे से नगर में इकट्ठे जो हो रहे हैं। जी हाँ, आगामी G-२० सम्मलेन २४ और पच्चीस सितम्बर २००९ को (इसी सप्ताह) इस्पात नगरी (Pittsburgh) में ही हो रहा है। बहुत से पत्रकार तो पिछले हफ्ते से ही यहाँ डेरा डाले हुए बैठे हैं। काफी लोगों के सवाल थे कि न्यू यार्क, वॉशिंगटन, लोस अन्जेलिस आदि बड़े बड़े नगरों के होते हुए इतनी महत्वपूर्ण सभा इस छोटी सी नगरी में क्यों हो रही है? राष्ट्रपति ओबामा के अनुसार ईसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस नगर में अद्वितीय अंतर्राष्ट्रीय विविधता के साथ-साथ हर मुश्किल वक्त से सफलतापूर्वक उभर आने की जिजीविषा और जीवट भी है। यदि आप या आपके कोई परिचित यहाँ तशरीफ़ ला रहे हों तो अपना (या उनका) कार्यक्रम मुझे बताने की कृपा करें ताकि मैं आपकी खातिरदारी के लिए तैयार रहूँ। धन्यवाद और शुभ यात्रा! इस नगरी ने अपने सीमित संसाधनों से विश्व का स्वागत करने की तैय्यारी तो शुरू कर दी है। आईये आपको कुछ झलकियाँ दिखाते हैं जी-२० की तैयारी की, चित्रों के सहारे: George Washington welcomes the visitors at Pittsburgh International Airport पिट्सबर्ग अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आगंतुकों का स्वागत करते हुए जॉर्ज वॉशिंगटन की आदमकद प्रतिमा Pittsburgh welcomes you on the ocassion of G-20 summit पिट्सबर्ग तैयार है स्वागत के लिए Swagatam - Welcome message in Hindi हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं में स्वागत संदेश G-20 in local magazines स्थानीय पत्रिकाओं में जी-२० की चर्चा (मनमोहन सिंह के चित्र के साथ) Why Pittsburgh? Because Pittsburgh is the city of the future पिट्सबर्ग ही क्यों? भविष्य का नगर! पिट्सबर्ग में आपका स्वागत है, हिन्दी में देखें यूट्यूब पर Labels: G-20, international summit, Pittsburgh, September 24, 2009, Pennsylvania, USA

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Photo Courtesy: Anurag Sharma]

Thursday, September 17, 2009

लित्तू भाई - कहानी [भाग 4]

[अगले अंक में समाप्य]

लित्तू भाई की कथा के पिछले भाग पढने के लिए समुचित खंड पर क्लिक कीजिये: भाग १; भाग २ एवं भाग ३ और अब, आगे की कहानी:

एक-एक करके सभी आगंतुक रवाना हो गए। लित्तू भाई सबके बाद घर से निकले। जाते समय गदा उनके हाथ में थी और एक अनोखी चमक उनकी आँखों में। वह अनोखी चमक मुझे अभी भी आश्चर्यचकित कर रही थी। चलते समय मुझसे नज़रें मिलीं तो वे कुछ सफाई देने जैसे अंदाज़ में कहने लगे, "फेंक दूंगा मैं, इसे मैं बाहर जाते ही फेंक दूंगा।"

उनके इस अंदाज़ पर मुझे हंसी आ गयी। मुझे हंसता देखकर वे उखड गए और। बोले, "शर्म नहीं आती, बड़ों पर हंसते हुए, नवीन (दद्दू) के भाई हो इसका लिहाज़ है वरना मुझ पर हंसने का अंजाम अच्छा नहीं होता है..."

माहौल में अचानक आये इस परिवर्तन ने मुझे हतप्रभ कर दिया। न तो मैंने लित्तू भाई से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा थी और न ही मेरी हँसी में कोई बुराई या तिरस्कार था। मैं तो कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था कि लित्तू भाई एक सहज नैसर्गिक मुस्कान से इस तरह विचलित हो सकते हैं। उनकी आयु का मान रखते हुए मैंने हाथ जोड़कर क्षमा माँगी और वे दरवाज़े को तेजी से मेरे मुँह पर बंद करके बडबडाते हुए निकल गए। शायद उस दिन उन्होंने ज़्यादा पी ली थी। तारीफों के पुल बाँधने के उनके उस दिन के तरीके से मुझे तो लगता है कि वे पहले से ही टुन्न होकर आये थे और बाद में समय गुजरने के साथ उनकी टुन्नता बढ़ कर अपने पूरे शबाब पर आ गयी थी।

खैर, बात आयी गयी हो गयी। पिट्सबर्ग छूट गया और पुराने साथी भी अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हो गए। बातचीत के सिलसिले कम हुए और फिर धीरे-धीरे टूट भी गए। सिर्फ दद्दू से संपर्क बना रहा। दद्दू की बेटी की शादी में मैं पिट्सबर्ग गया तो सोचा कि सभी पुराने चेहरे मिलेंगे। और यह हुआ भी। दद्दू के अनेकों सम्बन्धियों के साथ ही मेरे बहुत से पूर्व-परिचित भी मौजूद थे। एक दुसरे के बारे में जानने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर तभी ख़त्म हुआ जब हमने एक-दुसरे की जिंदगी के अब तक टूटे हुए सूत्रों को फिर से पूरा बिन लिया।

दद्दू और भाभी दोनों ही बड़े प्रसन्न थे। लड़के वालों का अपना व्यवसाय था। लड़का भी उनकी बेटी जैसा ही उच्च-शिक्षित और विनम्र था। इतना सुन्दर कि शादी के मंत्रों के दौरान जब पंडितजी ने वर में विष्णु के रूप को देखने की बात कही तो शायद ही किसी को कठिनाई हुई हो। शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई। शादी के इस पूरे कार्यक्रम के दौरान लित्तू भाई की अनुपस्थिति मुझे बहुत विचित्र लगी। शादी के बाद जब सब महमान चले गए तो मुझसे रहा नहीं गया। हम सब मिलकर घर को पुनर्व्यवस्थित कर रहे थे तब मैंने दद्दू से पूछा, "लित्तू भाई नज़र नहीं आये, क्या भारत में हैं?"

"नाम मत लो उस नामुराद का, मुझे नहीं पता कि जहन्नुम में है या जेल में" यह कहते हुए दद्दू ने हाथ में पकड़े हुए चादर के सिरे को ऐसे झटका मानो लित्तू भाई का नाम सुनने भर से उन्हें बिजली का झटका लगा हो।

भाभी उसी समय हम दोनों के लिए चाय लाकर कमरे में घुसी ही थीं। उन्होंने दद्दू की बात सुनी तो धीरज से बोलीं, "मैं बताती हूँ क्या हुआ था।"

और उसके बाद भाभी ने जो कुछ बताया उस पर विश्वास करना मुश्किल था।

[क्रमशः]