Friday, September 9, 2011

नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 3

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पिछली दो कड़ियों में हमने देखा कि नायक निर्भय और उदार होते हैं, साहस रखते हैं और त्याग के लिये तत्पर रहते हैं। दोनों प्रविष्टियों पर आयी टिप्पणियों से विचारों की अन्य बहुत सी खिडकियाँ खुलीं। हमने देखा कि नायक होने का दिखावा देर तक नहीं चलता। जीवन में नायक बनने का अवसर आने पर खरा टिकता है और खोटा साफ़ हो जाता है। नायक गढ़े नहीं जा सकते, वे अपने कर्म के बल पर टिकते हैं। मढ़े या गढ़े हुए नायक का पहले अगर गलती से सम्मान हो भी गया हो तो बाद में और अधिक छीछालेदर होती है। विमर्श में नायकों द्वारा दूसरों के सम्मान, शरणागत-वत्सलता और क्षमा का ज़िक्र भी आया और यह भी स्पष्ट हुआ कि नायक अहं को पीछे छोडकर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय कर्म करते हैं। अभिषेक ओझा ने दूरदर्शिता की बात की। गौरव अग्रवाल और सलिल वर्मा ने क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल, उद्यम, साहस, धैर्यं, बुद्धि, शक्ति, और पराक्रम की बात की। संजय अनेजा ने वीरता और बर्बरता का अंतर स्पष्ट किया। स्वामिभक्ति पर जहाँ दोनों प्रकार के विचार मिले वहीं शिल्पा जी ने कहा कि "वीरता, साहस, निर्भयता त्याग" किसी नायक में अपेक्षित होते हुए भी अनिवार्य नहीं हैं। मैने इस बात पर काफ़ी विचार किया लेकिन अब तक ऐसा कोई नायक सोच नहीं पाया जिसमें इन गुणों का अभाव रहा हो। क्या आप ऐसे कुछ लोकनायकों का नाम याद दिला सकते हैं?
भाग 1भाग 2अब आगे:
नायक, नायक बन ही नहीं पाए यदि उसमें क्षमाभाव नहीं हो। नायक समूह का नेतृत्व करता है, समूह में सभी प्रकार के दृष्टिकोण होते है। विरोधी संशय, प्रतिघात और परिक्षण भी। क्षमायुक्त समाधान ही उसे नायक पद प्रदान करने में समर्थ है। महानता की आभा का स्रोत क्षमा ही है। ~ हंसराज सुज्ञ
अनिता बोस (आभार: हिन्दुस्तान)
सप्ताहांत में कुछ मित्रों से बात हुई। जिन्होंने अपने-अपने नायक में वचन और कर्म की ईमानदारी देखी। ऐसा लगता है कि नायकों में एक प्रकार की पारदर्शिता पाई जाती है। हमारे एक परिचित संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों को कपोल-कल्पना कहते हैं लेकिन कई बार देखा है कि वे दूसरों की बात काटने के लिये उन्हीं ग्रंथों के सन्दर्भ देते हैं जिन्हें वे झूठा बताते हैं। ऐसे कृत्य में बेईमानी छिपी है। इसी प्रकार यदि ईश्वर और नैतिकता में विश्वास न रखने वाला व्यक्ति अपने लाभ के लिये धर्म के ऊपरी चिह्न तिलक आदि लगा ले किसी धार्मिक ट्रस्ट का नियंत्रक बन जाये तो यह भी एक प्रकार का छल ही हुआ। नायक की कथनी और करनी एक होती है। हो सकता है कि समय के साथ नायक के विचार बदलें, तब उसके वचन और कर्म भी उसी प्रकार बदलते हैं परंतु किसी भी क्षण उसके वचन और कर्म में भेद नहीं होता। मसलन यदि मैं किसी व्यक्ति से मुफ़्त में कुछ न लेने की बात करता हूँ तो मैं अपने नियोक्ता से बिना ब्याज़ मिलने वाला ऋण भी नहीं लूंगा। इसी प्रकार भ्रष्टाचारियों से घिरे रहकर स्वयं को स्वच्छ बताने में ईमानदारी नहीं दिखती।
जब पिता मुझे छोडकर गये तब मैं चार सप्ताह की थी। स्वतंत्रता संग्राम में अनेक लोगों ने त्याग करने के साथ कष्ट भी भोगे हैं, हम तो भाग्यशाली थे। ~ अनिता बोस फ़ैफ़ (नेताजी की पुत्री)
नायक का जीवन दूसरों के उत्थान को समर्पित होता है। उसे दूसरों के विकास की, उनकी आवश्यकताओं की समझ और उन्हें साथ लेने की व्यवहार-कुशलता भी होती है। वानर भालू तो राम के साथ चले ही, नन्ही गिलहरी भी चल पडी, राम के विराट व्यक्तित्व के सामने उसे कोई क्षुद्रत्व महसूस नहीं हुआ। गांधी और अन्ना इस मामले में समान हैं कि उनके साथ वे लोग भी आसानी से जुड सके जो किसी अन्य आन्दोलन में भागीदारी नहीं कर पाते। ऐसे नायक व्यापक जनसमूह को अपने साथ बान्ध पाते हैं, यहाँ तक कि परस्पर विरोधी विचारधारायें भी उनके सामने मिलकर चलती हैं। बादशाह खान और मौलाना आज़ाद को गांधीजी के अहिंसावाद में बौद्ध, जैन, हिन्दू या सिख विचारधारा का प्रक्षेपण नहीं दिखाई दिया।

नायक असम्भव को सम्भव कर दिखाते हैं। वे अति-सक्षम होते हैं। नायक सोने के दिल से संतुष्ट होने वाला जीव नहीं है उसे कुशल हाथ और सुदृढ पाँव भी चाहिये। उनमें ज्ञान के साथ दूरदृष्टि भी होती है। अधिक काम करने के बजाय वे कुशल काम कर दिखाते हैं। शिवाजी की सेना बहुत छोटी थी, न उतने अस्त्र थे न धन। तो उन्होंने छापामार युद्ध किये। तात्या टोपे को भारतीय सैनिकों की रसद की चिंता थी इसलिये उन्होंने उनके कूच के मार्ग में पडने वाले सभी ग्राम-प्रमुखों को आस-पास के ग्रामों की सहायता से रोटी का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी पहले ही विचार करके सौंपी। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के छोटे से संगठन ने अंग्रेज़ों की सेना, पुलिस और खुफ़िया संस्थाओं की नाक में दम कर दिया था।

उद्यमेन हि सिध्यंति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः॥

सोते शेर के मुख में हिरण नहीं घुसते। इसी प्रकार मनोरथ सिद्धि कर्म से होती है। नायक स्वयं कर्म करते हैं और अपने साथियों और अनुगामियों से असम्भव को सम्भव करा लेते हैं। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त जैसे शहीदों के आदर्श गुरु गोविन्द जब कहते हैं, "चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊँ, तब गोविन्द सिंह नाम कहाऊँ" तो वे ऐसा असम्भव कर दिखाने की क्षमता रखते हैं। मानवाधिकार विहीन समाज और अपनी बर्बरता के लिये मशहूर तुर्क, अफ़ग़ान बाज़ों को मासूम चिड़ियों से तुड़ाकर, सतलज से काबुल तक निशान साहिब फ़हरा देना क्या किसी आम आदमी के लिये सम्भव होता?

नेताजी और राजनेता (आभार: पीटीआइ)
नायक जन-गण के बीच आशा और उल्लास का संचार करते हैं। वे उन्हें मृत्यु से छुड़ाकर अमृत्व की ओर ले जाते हैं। रोज़ घुट-घुटकर मरने, अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध काम करने से बचाकर सत्यनिष्ठा के उस मार्ग पर लाते हैं जहाँ व्यक्ति अपना सर्वस्व त्यागकर भी अपने को भाग्यशाली समझता है। नायकों की विशेषता यह है कि वे जिसका जीवन छू लेते हैं वही बदल जाता है। राम अपने साथ हनुमान को भी भगवान बना देते हैं। नेताजी गांधीजी से अनेक मतभेद होते हुए भी उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दे देते हैं। फूलमाला पहनकर बैंड बजवाकर जेल जाने वाले कॉंग्रेसियों पर हँसने वाले चन्द्रशेखर आज़ाद मोतीलाल नेहरू की शवयात्रा में शरीक़ होते हैं और अहिंसावादी गान्धी के अनुयायी चन्द्रशेखर आज़ाद की शवयात्रा में इलाहाबाद की गलियों में तिल भर की जगह नहीं छोडते हैं। दूसरे शब्दों में, नायक व्यक्तिगत मतभेदों को ताख पर रखकर व्यापक उद्देश्यों के लिये काम करते हैं और अपने साथियों का भी निरंतर विकास करते रहते हैं। यदि कोई निरंतर अपना या अपने सीमित गुट का विकास कर रहा हो तो वह तानाशाह हो सकता है मगर नायक हरगिज़ नहीं। ऐसे व्यक्ति सत्ता भले ही हथिया लें सम्मान के अधिकारी नहीं होते, उनका बारूद खत्म होते ही उनका तख्ता और उनकी मूर्तियाँ उखाड़ दी जाती हैं। इसके उलट, नायकों का यश न केवल स्थायी होता है, वह लोगों के हृदय से आता है। उनमें किसी प्रकार का दवाब नहीं होता। माओवादी और जिहादी रोज़ गले काट रहे हैं तो भी उन्हें जन-समर्थन नहीं मिलता जबकि नेताजी की आवाज़ पर 50,000 से अधिक लोग अंग्रेज़ी सेना का मुकाबला करने आज़ाद हिन्द सेना में शामिल हो गये थे। ऐसे जननायकों के तत्कालीन विरोधी भी एक दिन अपनी भूल का प्रायश्चित कर उन्हें फूल-माला चढाते हैं।
कम्युनिस्टों द्वारा नेताजी के ग़लत आंकलन के लिये मैं क्षमा मांगता हूँ ~ बुद्धदेव भट्टाचार्य (कोलकाता, 23 जनवरी 2003)
यह तो स्पष्ट है कि नायक अकेले नहीं पडते। उनके साथ जनता होती है। उनके साथ अन्य नायक भी होते हैं। नायकों के साथ आने पर जनता का विकास तो होता ही है, नायक स्वयं भी एक दूसरे के आलोक से आलोकित होते हैं। नायकों की छत्रछाया में दूसरी पंक्ति सदा तैयार रहती है, "बिस्मिल" गये तो "आज़ाद" आ गये। नायक प्रतियोगिता नहीं करते, वे संरक्षक होते हैं। वे रत्नाकर को महर्षि वाल्मीकि और विभीषण को लंकेश बनाते हैं। उनका भी कोई प्रेरणा पुंज होता है और वे भी चाणक्य की तरह नये चन्द्रगुप्त मौर्य विकसित करते हैं।

विजेतव्या लंका चरणतरणीयो जलनिधिः
विपक्षः पौलस्त्य रणभुवि सहायाश्च कपयः ।
तथाप्येको रामः सकलमवधीद्राक्षसकुलम
क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महता नोपकरणे॥

सवा लाख से एक लड़ाने की बात हो या वानरों से राक्षस तुड़ाने की, नायकों की कार्यसिद्धि में अस्त्र-शस्त्र से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका उनके मनोबल की होती है। संकल्प और दृढ इच्छाशक्ति के बिना नायक बन पाना असम्भव सा ही है। गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल आज तक याद किये जाते हैं क्योंकि भारत के एकीकरण में उनकी इच्छाशक्ति का बडा योगदान रहा। अशिक्षा, ग़रीबी, आतंकवाद, भेद-भाव, सूखा, बाढ, कश्मीर आदि के मुद्दे आज तक हमें सता रहे हैं क्योंकि नेतृत्व में इच्छाशक्ति न होने पर सब संसाधन बेकार हैं। जब एक नगर के लिये पूरे राज्य सरीखा मंत्रिमण्डल हो और वह सदन भी सुरक्षा व्यवस्था सुधारने के बजाय अपने वेतन भत्ते बढ़ाने में ज़्यादा रुचि रखता हो तब अदालत परिसर में बम फ़टने से दुख कितना भी हो आश्चर्य नहीं होता है। राष्ट्र को शासक मंत्रिमण्डलों की नहीं नायकों की आवश्यकता है, क्षमता, साहस, उदारता, ईमानदारी और इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। यह कमी कैसे पूरी हो?

अब तक हमने नायकों के निम्न गुणों पर दृष्टि डाली है: निर्भयता, उदारता, साहस, त्याग, निस्स्वार्थ भाव, निर्लिप्तता, सत्यनिष्ठा, मानवता, क्षमा/करुणा, उदात्तमन, ईमानदारी, व्यवहार-कुशलता, जनता का साथ। असम्भव को सम्भव करने की क्षमता, परस्पर विकास, संरक्षण/मेंटॉर, बिना दवाब के जनसमर्थन, उद्देश्य की व्यापकता, दृढ इच्छाशक्ति/मनोबल। आपकी टिप्पणियों में वर्णित कई गुण अभी भी छूट गये हैं। उन पर भी बात होगी। मुझे लगता है कि ज्ञान/समझ/अनुभव भी नायकों का गुण होना चाहिये। आपको क्या लगता है? क्या एक सफल नायक के लिये शक्ति भी आवश्यक है?
[क्रमशः]

31 comments:

  1. नेता और राजनेता एक अद्भुत विश्लेषण .....!

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  2. यहाँ तो पूरा लेख ही गायब है -ये टिप्पणियाँ क्यों ?

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  3. @ अरविन्द मिश्र जी,
    यह गूगल ब्लॉगर कुछ तो तकनीकी गडबड करता है। पहले भी सम्पादित करते समय मेरे लेख ग़ायब हो चुके हैं। खैर, अभी वापस लगा दिया है।

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  4. अशान्ति में स्थिरता और शान्ति में प्रवाह, यही नायक की पहचान है।

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  5. राम ने जैसे हनुमान को भी भगवान् बना दिया वैसे ही अन्ना का सामीप्य मात्र से ही कई हनुमानों की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है ....

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  6. कई नयी जानकारियां मिली...आभार आपका !

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  7. आप ने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है

    @ ज्ञान/समझ/अनुभव भी नायकों का गुण होना चाहिये। आपको क्या लगता है?

    हाँ बिलकुल : उदाहरण फिलहाल जो मुझे अभी ध्यान में आता है वो हैं , श्री सुब्रमनियन स्वामी

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  8. कुल मिलाकर धैर्य ,वीरता , साहस , निर्भयता और त्याग के बिना कोई नायक नहीं बन सकता ,अपवाद में परिस्थितियों के मुताबिक कृष्ण का रणछोड़दास होना अंततः उनके नायकत्व के गुण में आता है !
    रोचक ज्ञानवर्धक आलेख!

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  9. वाणी जी,

    आभार! कृष्ण ने रण छोडा था मथुरा के निर्दोष नागरिकों को बचाने के लिये ताकि शत्रु उनके पीछे परशुराम क्षेत्र तक आये और वे परशुराम से नये शस्त्र/दीक्षा लेकर उसका हनन कर सकें। तो इस रण छोडने के पीछे भी नागरिकों की रक्षा (जन कल्याण, उदारता, करुणा) की भावना ही छिपी थी।

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  10. @ क्या एक सफल नायक के लिये शक्ति भी आवश्यक है? ........ हाँ - बिल्कुल |
    शक्ति = ७०% इच्छा शक्ति + ३०% शारीरिक शक्ति ...

    क्या आपको लगता है कि नायकत्व के लिए "प्रेम" एक आवश्यक गुण है ? एक व्यक्ति विशेष से सीमित प्रेम नहीं, बल्कि वृहद प्रेम - अपने पूरे समाज से सच्चा प्रेम - जो उस मनुष्य को उस समाज के दुःख को देख कर चुप रहने ही ना दे ? क्योंकि - आप कोई काम [ पूरे व्यक्तित्व को उसमे डुबा कर ] तब ही कर सकते हैं - जब आप उसके लिए पूरी तरह involved हो सकें | सिर्फ आदर्शों पर चल कर ही नायक बनना मुझे संभव नहीं लगता, जब तक कि कर्ता का दिल उस कार्य में पूर्ण रूपेण संलग्न ना हो |

    ग़ज़ब का आलेख है यह आपका | इससे पहले की लेख श्रुंखला "शहीदों को तो बख्श दो" बहुत पसंद आई थी, और अब यह !!! प्रणाम आपको |

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  11. chachu.........is srinkhla ke liye
    hardik abhar.....

    sabhi vigya jan ko pranam.

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  12. नायकों के ये सारे गुण तो हैं. लेकिन सभी गुण सभी नायक में हों ये मुझे जरूरी नहीं लगता. अगर ऐसा हो तो वो नायक आदर्श - हर तरह से पूर्ण इंसान हो जाएगा. जो एक अच्छे नायक में होना भी चाहिए. पर वास्तव में मुझे लगता है कि जैसे गति के हर आदर्श नियमों में घर्षण भी लगाना होता है. वैसे ही ये नायक भी हम आम इंसानों की ही तरह होते हैं. इनमें भी इन आदर्शों के साथ बाकी गुण-दोष भी होते हैं.

    पर इनमें एक गुण ये भी होता है कि वे अपनी कमजोरियों को समझते हैं. उससे नेतृत्व किस तरह प्रभावित हो सकता है और किस तरीके से अपनी कमजोरियों का प्रबंधन करना है वो ये भी समझते हैं. और समय के साथ सीखते चले जाना भी इन नायकों का एक गुण होता है.

    दूसरी बात मुझे ये भी लगती है कि समय के साथ नायकों की अच्छी बातें इतनी महिमामंडित होती है कि उनकी कमजोरियां इतिहास के पन्नों में कहीं खो जाती है.

    मेरी ये बातें दो मान्याताओं पर निर्भर हैं पहली ये कि पूर्ण इंसान संभव नहीं, दूसरी ये कि नायकों के बारे में हमें जो बातें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं वो केवल उनके अच्छे पक्ष को लेकर ही होती हैं. अगर ये दोनों सच हैं तो अपनी कमजोरियों की समझ और समय के साथ सीखने-बदलने वाले गुण की महत्ता मुझे अधिक लगती है.

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  13. नायक के गुणों पर तलस्पर्शी विवेचन है।

    कोई तो विशिष्ठ गुण है जो नायक को असाधारण सामर्थ्य प्रदान करता है।

    मुझे लगता है, नायक इन सभी गुणों के गूढ़ मर्म को ज्ञात कर आत्मसात कर लेता है, और उनके सार्थक क्रियान्वन की अद्भुत क्षमता का विकास कर लेता है।

    परस्पर विरोधी नजर आने वाले गुणो को भी नायक, विलक्षण बुद्धि-योग से साकार कर देता है।

    उदारता के साथ दृढ़ता भी।
    निर्भयता के साथ दया-करूणा भी।
    धैर्य के साथ त्वरित निर्णय क्षमता भी।
    साहस के साथ समता भी।
    क्षमा के साथ शौर्य भी।
    त्याग के साथ अधिकार चेतना भी।
    अधिकार-मांग के साथ कर्तव्यनिष्ठा भी।
    संरक्षण प्रदान करने के साथ स्वावलम्बन प्रेरणा भी।
    जनहित को जुजारू तो जनता को अनुशासन का पाठ भी।
    गुण मर्मज्ञ होता है नायक

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  14. जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी,
    लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी |

    लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता,
    सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता |

    पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को,
    चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को ||

    आइये शुक्रवार को भी --
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  15. कभी-कभी जो सर्वगुण संपन्न नहीं होता वह भी नायक बन जाता है। क्योंकि वह दूसरों से बेहतर होता है। शायद इसीलिए यह कहावत प्रचलित हुई है..
    ..अंधों में काना राजा।

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  16. @उद्यमेन हि सिध्यंति कार्याणि मनोरथैः ।
    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः॥
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    @@विजेतव्या लंका चरणतरणीयो जलनिधिः
    विपक्षः पौलस्त्य रणभुवि सहायाश्च कपयः ।
    तथाप्येको रामः सकलमवधीद्राक्षसकुलम
    क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महता नोपकरणे॥
    ---------------------------------------------------------
    इन तराशें हुए सन्दर्भों के बाद कुछ बतानें की जरूरत कहाँ.
    बेहतरीन पोस्ट,जारी रखें,आभार.

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  17. अत्यंत सशक्त और उद्वेलित करता आलेख. शुभकामनाएं.

    रामराम

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  18. नायकों के गुणों की श्रृंखला अनंत है.. अनंत है उनकी महिमा की तरह.. लेखन, बुद्धि, विचार आदि भी नायक के ही गुण हैं.. शक्ति के आभूषण के कारण कई 'खलनायक' भी समाज में दिखते हैं. जिन्हें एक वर्ग विशेष नायक मानता रहा है.. जैसे हाजी मस्तान, वरदराज मुदलियार और अन्य.. फ़िल्में भी बनीं इन (खल)नायक के जीवन चरित पर. लिहाजा एक रिलेटिविटी के चश्मे से भी नायक के गुणों को देखने की आवश्यकता है.
    .
    पुनश्च:
    पहले श्लोक को ध्यान से देखें कुछ त्रुटि है..
    कार्याणि 'न'मनोरथे!!

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  19. बहुत ही गहन विवेचन कर लिखा गया आलेख...और उस पर उतनी ही महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ...

    ज्ञानवर्द्धक आलेख

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  20. सलिल जी, ध्यानाकर्षण के लिये धन्यवाद। ग़लती ठीक कर दी है।

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  21. शिल्पा जी,

    सही याद दिलाया। नायकों के हृदय में करुणा और प्रेम का सागर हिलोरें लेता है।

    सुज्ञ जी,
    आपने तो गागर में सागर भर दिया।

    अभिषेक,
    सहमत हूँ।

    रविकर जी, आभार!

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  22. और भी विचारों की प्रतीक्षा है। पढ़ने को, मनन करने को अच्छी खुराक मिल रही है।

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  23. सरकार को शायर की जरुरत-Apply On-Line
    कायर की चेतावनी, बढ़िया मिली मिसाल,
    कड़ी सजा दूंगा उन्हें, करे जमीं जो लाल |

    करे जमीं जो लाल, मिटायेंगे हम जड़ से,
    संघी पर फिर दोष, लगा देते हैं तड़ से |

    रटे - रटाये शेर, रखो इक काबिल शायर,
    कम से कम हर बार, नया तो बक कुछ कायर ||

    आदरणीय मदन शर्मा जी के कमेंट का हिस्सा साभार उद्धृत करना चाहूंगा -
    अब बयानबाजी शुरू होगी-
    प्रधानमंत्री ...... हम आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देंगे ...

    दिग्गी ...... इस में आर एस एस का हाथ हो सकता है

    चिदम्बरम ..... ऐसे छोटे मोटे धमाके होते रहते है..

    राहुल बाबा ..... हर धमाके को रोका नही जा सकता...

    आपको पता है कि दिल्ली पुलिस कहाँ थी?
    अन्ना, बाबा रामदेव, केजरीवाल को नीचा दिखाने में ?????

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  24. सारगर्भित जानकारीपूर्ण आलेख....

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  25. आज तीनो कड़ियों को एक साथ पढ़ा...और मन की जो स्थति है बता नहीं सकती....सौभाग्य है हमारा जो इस प्रकार सुस्पष्ट सारगर्भित गंभीर आलेख पढने का अवसर मिला है...

    इसके एक एक शब्द में मैंने अपने मनोभावों को प्रतिध्वनित होते पाया है...इससे सुन्दर और सुघड़ इस विषय पर और क्या और कैसे लिखा जा सकता है, यह मेरे समझ से तो बाहर है...इसलिए अपनी तरफ से इसमें और कुछ भी जोड़ने में मैं अक्षम हूँ...

    हाँ, अंतिम वाक्य में आपने जो पूछा है कि- क्या एक सफल नायक के लिये शक्ति भी आवश्यक है?
    यहाँ मैं यही कह सकती हूँ कि शक्ति तो पहली आवश्यकता है,परन्तु यह शक्ति बाहरी नहीं, नायक का आत्मबल तथा नैतिक शक्ति ही होती है..

    विराट कल्याण भावना यदि मन में हो और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने का संकल्प हो,तो उस व्यक्ति में नैतिक बल स्वयमेव इतना आ जाता है कि उसकी एक पुकार पर हजारों लाखों करोड़ों जन जो कि जनकल्याण ,सत के जय और असत के नाश के यज्ञं में जीवन अर्पित करना चाहते हैं, स्वाभाविक जुड़ कर नायक की शक्ति बन जाते हैं...

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  26. जी, मैं चौथी कड़ी पढ़ने को व्यग्र हूं. फीड में दिखाई दी, लेकिन उपलब्ध नहीं है.

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  27. जी, मैं चौथी कड़ी पढ़ने को व्यग्र हूं. फीड में दिखाई दी, लेकिन उपलब्ध नहीं है.

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  28. नयी जानकारियां मिली....ज्ञानवर्द्धक आलेख

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  29. गज़ब का लेख है ... नायक में क्या क्या गुण होने चाहियें ... शायह पूरी तरह से लिपिबद्ध करना इतना आसान नहीं पर ये सत्य है की समाज हमेशा किसी न किसी नायक की तलाश में रहता है और अगर कुछ गुण भी इंसान मोएँ आ जाएं और वो सतत पालन कर सके तो नायक के समकक्ष पहुँच जाता है ...
    बहुत ही प्रभावी श्रंखला पढ़ने को मिली बहुत समय बाद ...

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।