दादाजी के पिछ्डे से कस्बे में वीरसिंह को एक अलौकिक सुन्दरी बार-बार दिखती है। वासिफ के घर उससे एक नाटकीय भेंट होती है और आशाओं पर तुषारापात भी।
पिछले अंक: भाग 1; भाग 2; भाग 3; भाग 4 भाग 5; भाग 6; भाग 7
चन्द्रमा चित्र: अनुराग शर्मा [Photo: Anurag Sharma] |
“हे भगवान! यह क्या हो रहा है” वीरसिंह अपनी कहानी कहते हुए मानो उसी बीते हुए काल में लौट गये हों। अब वे और वासिफ हवेली के बाहर खड़े थे। वासिफ उन्हें अकेले वापस भेजने को कतई तैयार न था परंतु वे अकेले ही घर जाने पर अड़े हुए थे। आगे की बात वीरसिंह के शब्दों में।
मुझे अकेले वापस जाने में डर लग रहा था। शायद रास्ते में चक्कर खाकर गिर पड़ूँ या फिर अपनी ही धुन में खोया हुआ रास्ता पार करते समय पीछे से आती लॉरी का भोंपू सुन न पाऊँ और दुनिया त्याग दूँ। मैं मौत से नहीं डरता लेकिन मेरा भय केवल इस बात का था कि माँ मेरी अकाल मृत्यु को सह नहीं पायेंगी। ऊपर से आकाश में छाये घने बादल और रह-रहकर कड़कती बिजली। यहाँ आते समय तो आसमान एकदम साफ था, फिर अचानक इतनी देर में यह क्या हो गया?
नहीं, मैं अकेले घर नहीं जा सकता था, उस समय और वैसी मानसिक स्थिति में मुझे हवेली से बाहर निकलना ही नहीं चाहिये था। लेकिन मैं हवेली में रुक भी नहीं सकता था और वासिफ के साथ चल भी नहीं सकता था। मुझे जाना था और अकेले ही जाना था। घर दूर ही कितना है? मैं होश में नहीं था। उसके सामने न जाने क्या सही-गलत बक दूँ अपनी परी के बारे में? नहीं, मैं परी का मान कम नहीं होने दूंगा। परी का मान? किस बात का मान? वाग्दत्ता होकर मुझसे प्यार की पैंगें बढ़ाने वाली का? न झरना अप्सरा है, न मैं देव हूँ, और न ही नई सराय हमारा असीम स्वर्ग। और फिर नई सराय है ही कितनी बड़ी? खो नहीं जाऊंगा? छोटी सी नई सराय तो आज से मेरे लिये ऐसा नर्क है जिसकी आग में मैं ताउम्र जलूँगा।
पाँव मन-मन के हो रहे थे और मन हवेली में अटका था। मेरा मन. मेरा पवित्र मन एक चरित्रहीन की चुन्नी में कैसे अटक सकता है? इतना कमज़ोर तो तू कभी भी नहीं था। झटक दे वीर, उसे अभी यहीं झटक दे। इस चार दिन के भ्रूण को जन्मने नहीं देना है। काल है यह, नाश है दो सम्माननीय परिवारों का।
मानस के अंतर्द्वन्द्व से गुत्थमगुत्था होते हुए वीर धीरे-धीरे हवेली से दूर होते गये। अचानक घिर आयी काली घटा ने पूर्णिमा के चाँद को अपने आगोश में बन्द सा कर लिया था। छिटपुट बून्दाबान्दी भी शुरू हो गयी थी।
कुछ ही दूर पहुँचे थे कि 8-10 वर्ष की एक बच्ची उनकी ओर दौड़ती हुई आती दिखी। जब तक वे कुछ समझ पाते, वह आकर उनसे लिपट गयी। वे हतप्रभ थे। अपने हाथों से उनकी कमर को घेरे-घेरे ही बच्ची ने कहा, “कहाँ चले गये थे आप? इतनी रात हो गयी है। अब घर चलिये। इतनी बारिश नहीं थी पर उनका कुर्ता गीला हो गया। बच्ची रो रही थी। उन्होने उसके सर पर हाथ फेरा और उनकी आंखें भी गीली हो गयीं। बच्ची के पीछे-पीछे चश्मा लगाये छड़ी के सहारे चलते हुए एक बुज़ुर्ग पास पहुँचे और बोले, “रोओ मत बच्चों, मिल गये, अब घर चलो। काके, तू सीधे कर जा पुत्तर। निक्की, तू मेरे नाल आ, खाना लेकर आते हैं सबके लिये।“
वे दोनों अन्धेरे में से जैसे अचानक प्रकट हुए थे उसी तरह अन्धेरे में गुम हो गये। वीर सिंह का कुर्ता और आँखें अभी भी गीले थे। अप्सरा के ख्यालों में खोये हुये वे अपने से बेखबर तो पहले से ही थे, अब इस बच्ची और उसके दादाजी ने उन्हें अचम्भे में डाल दिया था। उन्होंने आगे चलना शुरू किया तो समझ आया कि राह अनजानी थी। आसपास कोई घर-दुकान नज़र नहीं आ रहा था। नई सराय बहुत बड़ी भले ही न हो परंतु वे फिर भी खो गये थे। आज वे चाहते भी यही थे।
दोनों ओर घने वृक्षों से घिरी सड़क उन्हीं की तरह अकेली चली जा रही थी अपनी ही धुन में, किसी संगी के बिना। आगे कुछ प्रकाश दिखा, एक मैदान सा कुछ। प्रकाश, आग... नर्क! घिसटते हुए से पास पहुँचे तो मुर्दा सी नहर के किनारे एक चिता अभी सुलग रही थी। आँखों में लाली और हाथों में कुल्हाड़ियाँ लिये दो बाहुबली जब उनकी ओर बढ़े तो उन्हें साक्षात काल का स्पर्श महसूस हुआ। अचानक ही मूसलाधार वर्षा शुरू हो गयी। उनका पाँव कीच भरे एक गड्ढे में पड़ा और धराशायी होने से पहले ही वे अपने होश खो बैठे।
हम्म! प्रेम कहानी में रहस्य की छाया!
ReplyDeleteहल्का सा स्पर्श बहुत जमा।
एक साथ निर्मल वर्मा और अमृतलाल नागर याद आ गए।
अरे बाप रे! पिछले कड़ी के कमेन्ट में मैंने इसे सिंपल प्रेम कहानी कह दिया था, गलती नहीं गुनाह है ये | आप तो रहस्य रोमांच की दुनिया में ले आये | अब मुझे चन्द्रकान्ता याद आ रही है |
ReplyDeleteझटके खा रहे हैं जी और इस बार तो बारिश, पूर्णिमा का चांद जैसे ऐडीशनल ऐलीमेंट्स भी हैं।
ReplyDeleteवर्तनी नियंत्रक राव साहब कमेंट कर चुके हैं तो हमें बोलना नहीं चाहिये, लेकिन कल ही एक गाना सुना है फ़िर से, ’मुंह आई बात न रैहंदी अए’ सो कह भर देते हैं, ’प्यार की पैंगें’ सही है क्या? हमने कहकर फ़र्ज पूरा कर दिया, आप इग्नोर कर दीजियेगा।
वीर सिंह तो बेहोश हो गया, सर अपनी भी चकरा रहा है। ये किस तिलस्म में खो गया..! चंद्रकांता फिर से पढ़नी पड़ेगी।
ReplyDelete@ गिरिजेश, नीरज, देवेन्द्र,
ReplyDeleteमेरी कहानी में रहस्य कहाँ होता है केवल सत्य ही तो होता है, कभी कभी थोडा धुन्धलका होने की वजह से स्पष्ट दिखता नहीं है, बस्स।
@ मो सम कौन,
ReplyDeleteहम तो सहमत हैन, आपके वर्तनी-स्क्वैड से, अब वीरसिंह का पता नहीं। कुंवर साहब ठहरे अपनी मर्ज़ी के मालिक।
आप कह रहे हैं, आपकी कथाओं में रहस्य नहीं, सत्य होता है। सत्य तो कभी रहस्यमयी नहीं होता। लगता है, आप सत्य का नया वर्जन पेश कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहरहाल, चक्कर वीरसिंह को नहीं, मुझे आ रहे हैं, आपकी भूल-भुलैया में घिर कर।
@ विष्णु बैरागी जी,
ReplyDeleteसत्य™ 3.52
ये तो भूत- प्रेत कथा नजर आ रही है ....!
ReplyDelete@वाणी गीत
ReplyDeleteनई सराय की पिटारी में था सब कुछ - भूत, प्रेत, अप्सरा। अलबत्ता वैसा कुछ भी नहीं था जैसा दिखता था।
रोचक रहस्य और भी रुचिकर बना रहा है अब तो आगे क्या होता है....इंतजार रहेगा
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद, सहसा।
ReplyDeleteरहस्य गहराता जा रहा है ...प्रेम कहानी नयी दिशा ले रही है ...
ReplyDeleteलगता है देवकीनंदन खत्री की आत्मा से मुलाकात होगई?:) बहुत ही सुंदर रहस्य रचा है.
ReplyDeleteरामराम.
@पाँव मन-मन के हो रहे थे और मन हवेली में अटका था। मेरा मन. मेरा पवित्र मन एक चरित्रहीन की चुन्नी में कैसे अटक सकता है? इतना कमज़ोर तो तू कभी भी नहीं था। झटक दे वीर, उसे अभी यहीं झटक दे। इस चार दिन के भ्रूण को जन्मने नहीं देना है। काल है यह, नाश है दो सम्माननीय परिवारों का।
ReplyDeleteविचारप्रवाह का वीरसिंह के साथ साथ चलना अच्छा लगा।
पहले मन में आया कि पूछ लूँ कि डिजिटल कारीगरी है या फोटोग्राफ? फिर चन्द्रमा के चित्र वाली फाइल के नाम से स्पष्ट हो गया कि फोटोग्राफ है।
जिस रात फोटो लिया गया, हिमपात हुआ था क्या?
इस चाँदनी में आप अकेले बाहर थे या ...?
महल या बीस साल बाद की कहानी तो नही दोहरा रहे जी.
ReplyDelete
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
@ गिरिजेश राव
ReplyDeleteजिस रात फोटो लिया गया, हिमपात हुआ था क्या?
वीरसिंह के जीवन का सबसे बड़ा तुषारापात हुआ था
इस चाँदनी में आप अकेले बाहर थे या ...?
नहीं चाँद साथ में था
@ राज भाटिय़ा said...
ReplyDeleteमहल या बीस साल बाद की कहानी तो नही दोहरा रहे जी.
न जी न, रिठेल में अपना यकीन नहीं है - इस ब्लॉग में अच्छा-बुरा जो भी मिलेगा - ओरिजिनल होने की गारंटी है
साहब कहानियां आप अच्छी लिखते हैं बस दो भागों के बीच का अन्तराल ज्यादा हो जाता है खैर कोई बात नहीं. मैं हमेशा कहानी के मजे लेता हूँ उसमे कभी ऐसा होता या वैसा होता कह कर उसकी जाँच पड़ताल नहीं करता. मेरे हिसाब से कहानी कहानी होती है जिसमे कुछ भी कहा जा सकता है या कुछ भी किया जा सकता है और कहानी के उसी हिसाब से मजे लेने चाहिए ज्यादा मं मेख मुझे समझ नहीं अति. चलिए जी टिप्पणी ख़त्म.
ReplyDeleteअब काम कि बात. मुझे ये बताइए कि क्या एक साधारण कैमरे से वैसा चित्र खीचा जा सकता है जैसा अपने ऊपर लगाया है. सच कहूँ अपने 5X जूम वाले डिजिटल कैमरे से मैं अभी तक रात मैं चन्द्रमा का ऐसा फोटो नहीं खीच पाया हूँ. क्या इस प्रकार के कैमरे से ऐसा प्रयास किया जा सकता है. जरा मार्ग दर्शन करें. और हाँ मेरा केमरा भी इस श्रेणी का सबसे सस्ता केमेरा है.
@क्या एक साधारण कैमरे से वैसा चित्र खीचा जा सकता है जैसा अपने ऊपर लगाया है. सच कहूँ अपने 5X जूम वाले डिजिटल कैमरे से मैं अभी तक रात मैं चन्द्रमा का ऐसा फोटो नहीं खीच पाया हूँ. क्या इस प्रकार के कैमरे से ऐसा प्रयास किया जा सकता है. जरा मार्ग दर्शन करें.
ReplyDeleteमैं भी आप की ही तरह शौकिया (अमेच्योर) फोटोग्राफर ही हूँ और मेरा कैमरा भी साधारण ही है| फिर भी आपके प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करूंगा| उत्तर बड़ा होने के कारण एक नई पोस्ट में|
अक्सर कथा और संस्मरण में भेद कर पाना कठिन हो जाता है मेरे लिए ! वीर सिंह जिन लम्हों से गुज़र कर आये हैं वहां यह कहना भी दुश्वार हो जाता है कि कथा में मज़ा / रोमांच या रहस्य है ! सच तो ये है कि मैं तो उनके दुःख से दुखी हूं ! शायद ये आपके कहने का असर हो !
ReplyDeleteसस्पेंस और कड़ियों के बीच में लम्बा अंतराल.
ReplyDeleteज़रा जल्दी...
ACHHA TO AAP RAHASMYA SANSAR WALE HAIN....HUM SAMJTE RAHE AAP....DIL KI
ReplyDeleteBAAT WALE HAIN.....
PRANAM
लग रहा है जैसे चन्द्रकान्ता संतति पढ़ रही हूँ.....
ReplyDeleteलेकिन बहुत शिकायत है आपसे...इतना गैप रखकर आप अपने पाठकों को कष्ट दे रहे हैं...
रोचक ।
ReplyDeletemazedaar kahani...
ReplyDeleteacha laga pad kar..
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
पोस्ट पर टिपण्णी देने का जुगाड़ नहीं छोड़ा आपने...क्यों ????
ReplyDeleteखैर ,यहाँ चस्पा कर देती हूँ...
सुना था कि नहीं ,यह तो याद नहीं,पर देखने का अवसर पहली बार मिला यह नायाब गीत ...
आभार आपका...
और कहानी की क्या कहूँ....