Tuesday, September 27, 2011

नायकत्व क्या है - सारांश और विमर्श

.
आपके सहयोग से एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ, नायकत्व को पहचानने का। पाँच कड़ियाँ हो चुकी हैं, पर बात अभी रहती है। भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4;  भाग 5; ... और अब आगे:


न्यूयॉर्क में नेहरु व कास्त्रो; आज कौन कहाँ हैं? 
अपनी चार और छह वर्षीया बेटियों के साथ न्यूयॉर्क नगर के एक मेट्रो स्टेशन पर खड़ा अधेड़ व्यक्ति जब निकट आती ट्रेन के आगे कुछ फ़ुट भर की दूरी से कूद गया तो लोगों के विस्मय का ठिकाना न रहा। पाँच डब्बे उसके ऊपर से गुज़र जाने के बाद ट्रेन रुकी तो लोगों ने उसकी आवाज़ सुनी, "मेरी बेटियों को बता दीजिये कि हम ठीक हैं।"

बिजली काट दी गयी और रक्षाकर्मी नीचे उतर गये। ट्रेन से चोट खाने में कुछ सेंटीमीटर ही बचे श्री वेज़्ली ऑट्री (Wesley Autrey) को सुरक्षित निकाल लिया गया। ऐंठन और चक्कर आने से बेहोश होकर ट्रेन के नीचे गिरे बीस वर्षीय युवक कैमरॉन हॉलोपीटर (Cameron Hollopeter) की जान भी बच गयी थी क्योंकि समय रहते एक साहसी नायक अपनी नन्ही बेटियों को पीछे छोड़कर अपनी जान पर खेल गया था। हमारे चहुँ ओर बिखरे अनेक नायकों की तरह वेज़्ली के उदाहरण ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि नायकों के लिये अवसरों की कोई कमी नही है।

उस रात अपने काम पर जाने से पहले वह 50 वर्षीय मज़दूर अस्पताल में भर्ती कैमरॉन से मिला और पत्रकारों के हुज़ूम के पूछने पर इतना ही बोला, "कोई अनोखी बात नहीं, मैंने केवल अपना कर्तव्यपालन किया है।"

निम्न सारणी में मैंने नायकों के कुछ सर्वमान्य गुण दर्शाने का प्रयास किया है। किसी विशेष क्रम में नहीं हैं। आपके सुझावों व सलाह के अनुसार यथायोग्य सुधार करता रहूँगा। देखिये और अपने विचारों से अवगत कराइये:

गुण  कुछ उदाहरण गुण विस्तार विलोम
साहस प्रत्येक नायक साहस के बिना नायकत्व ... असम्भव स्वार्थ, भय, शिथिलता
व्यक्तिगत स्वतंत्रता दैवी तंत्र में हर देवता स्वतंत्र है जबकि आसुरी/राक्षसी व्यवस्था में शक्ति का एक दमनकारी केन्द्र वैचारिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, शैक्षणिक आदि हर प्रकार की स्वतंत्रता का सम्मान, असहमति का आदर तानाशाही, दमन, असहिष्णुता, अनुचित बलप्रयोग; जनजीवन सत्ताधीश के नियंत्रण में 
आंकलन, रणनीति, कार्य-निष्पादन प्रत्येक नायक स्थिति का सही आकलन, उसके अनुसार रणनीति का निर्माण और कार्य निष्पादन हिंसा, बाहुबल, रक्तिम क्रांति, बारूद की पूजा
धैर्य, सहनशक्ति, संयम प्रत्येक नायक जल्दी का काम शैतान का, सहज पके सो मीठा होय जल्दबाज़ी, अधीरता
निस्वार्थ भाव, उदारता, परोपकार, जनसेवा प्रत्येक नायक इदम् न मम्,
सर्वे भवंतु सुखिनः,
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
निहित स्वार्थ, लोभ, व्यक्तिगत लाभ की आशा
विश्वास, श्रद्धा प्रत्येक नायक काम तो होगा ही, पहली आहुति कौन दे शंका, अस्थिर मन, दुविधा
एकाग्रता प्रत्येक नायक असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥
अधूरा मन, चित्त की चंचलता, मोह, लोभ, अंतर्द्वन्द्व 
वीरता प्रत्येक नायक परशुराम से लेकर मंगल पाण्डे तक भय, स्वार्थ, मोह, कायरता, आतंक
सातत्य प्रत्येक नायक गीता के अनुसार "अभ्यास" कभी हाँ, कभी न, डांवाडोल मन
निश्चय, दृढता, संकल्प, इच्छाशक्ति, नि:शंकभाव भगवान राम, गुरु गोविन्द सिंह, शिवाजी, चन्द्रशेखर आज़ाद, भगवतीचरण वोहरा, नेताजी, एब्राहम लिंकन जनहित में जो ठान लिया वह होके रहेगा, लक्ष्यबेधन की सफलता में कोई शंका नहीं किस्म-किस्म के प्रारूप, आधा-अधूरा मन, भय से सत्ता/शक्ति/अधिकारी की बात मानना
शुचिता, पारदर्शिता, सत्य, ईमानदारी राजा हरिश्चन्द्र, विनोबा भावे, अनेक संत न झूठ की ज़रूरत न बेनामी सौदे, न विचारधारा के संकीर्ण बिन्दु, न दुराव, न छिपाव, दोस्ती, दुश्मनी सब स्पष्ट, ग्लासनोस्त  छल, सत्ता हथियाने तक विचारधारा के कलुषित पक्ष छिपाकर रखना। ऐसा एजेंडा जिसे छिपाना पड़े
सृजन, नवीनता विनोबा, गांधी, भीकाजी कामा, राधानाथ सिकदरराम चन्द्र शर्मा, बिन्देश्वर पाठक जयपुर पांव, सुलभ शौचालय, हिमालय त्रिकोणमिति सर्वेक्षण, भूदान और सविनय अवज्ञा जैसे आन्दोलन पुरानी समस्याओं का नूतन हल ढूंढने की लालसा और क्षमता के उदाहरण हैं लकीर के फ़कीर, मानसिक दिवालियापन, कट्टरपंथ
ज़िम्मेदारी का भाव, स्वीकारोक्ति रामप्रसाद बिस्मिल, राणा प्रताप, दलाई लामा अपने काम की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर, मिशन असफल होने पर ईमानदार स्वीकारोक्ति और कारण-निवारण आँकलन क्षमता का अभाव, दोषारोपण परिस्थितियों या अन्य पक्ष को; आंगन टेढा
यज्ञभाव, समन्वयीकरण, लोकतंत्र जॉर्ज वाशिंगटन, लेख वालेसा, गोर्बाचोफ़, अटल बिहारी वाजपेयी, गांधी, अन्ना हज़ारे, नाना साहेब, नेताजी मिलजुलकर विमर्श, लक्ष्य-निर्धारण, और उद्देश्य-प्राप्ति, भेद को मिटाकर साम का सम्मान, मतभेद व विविधता का आदर, व्यक्तिवाद का अभाव तानाशाही, भेद, द्वेष, अलगाववाद, विभाजन, विघटन, फिरकापरस्ती
निष्ठा, समर्पण नेताजी, शहीदत्रयी, तात्या टोपे, भरत, हनुमान, लक्ष्मण, विभीषण, मीरा, अजीमुल्ला खां छोटे उद्देश्यों के मुकाबले विस्तृत उद्देश्यों में निहित होती है, कई बार इसे ग़लती से स्वामिभक्ति समझा जा सकता है। बहसें, बाधायें, हुज्जत, हीन भावना, कुंठा, स्वामिभक्ति, व्यक्तिवाद, व्यक्तिपूजा
ज्ञान, जाँच, खोज, ज्ञानपिपासा, बहुमुखी प्रतिभा एच.एस.आर.ए. के अधिकांश क्रांतिकारी, भगवान राम, भगवान कृष्ण, ल्योंआर्दो दा विंची नायक जीवनभर सीखते-सिखाते हैं,  खुली जानकारी व्यवस्था; सत्ता की नहीं सत्य की खोज  अन्धश्रद्धा, विचारधारा/कल्ट/धर्म/जाति का परचम
शक्ति, बल, क्षमता प्रत्येक नायक सोने का दिल काफ़ी नहीं ... केवल अच्छा ही नहीं, सक्षम भी होना दौर्बल्य, अक्षमता, प्रमाद
क्षमा, वात्सल्य, प्रेम, करुणा बुद्ध, महावीर, प्रभु यीशु, मदर टेरेसा, रामानंद वसुधैव कुटुम्बकम् हिन्सा, क्रूरता, अहंकार, स्वाभिमान
निर्लिप्तता, निरपेक्षता दुर्गा भाभी, खुदीराम बासु गीता के अनुसार "वैराग्य" स्वार्थ, लोभ, अहंकार, पक्षपात
भावनात्मक परिपक्वता भारतीय ग्रंथों के अधिकांश नायक, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जोश नहीं होश से काम करना. भावनाओं से नहीं, विचार-विमर्श-मंत्रणा से कार्य निष्पादन, धीर, गंभीर, छवि से बेफिक्र प्रपंच, जोश में होश खो बैठना, उकसावे में आ जाना, भड़क जाना, आत्मविश्वास में कमी
त्याग, बलिदान मीरा, अरस्तू, यीशु, सीता, गुरु अर्जुन देव, रानी लक्ष्मीबाई, चाफेकर बन्धु आदि तन मन धन न्योछावर करने को तैयार, कर्मण्येवाधिकारस्ते ... स्वार्थ, लाभ-हानि का हिसाब, दूसरों से तुलना
न्यायप्रियता प्रत्येक नायक आदिशंकर और मण्डन मिश्र के शास्त्रार्थ में श्रीमती मिश्र का निर्णायक बनना महापुरुषों की न्यायप्रियता का अनूठा उदाहरण है माइट इज़ राइट; मेरा देश/धर्म/जाति/परिवार/विचार ही श्रेष्ठ; संकीर्णता, क्रूरता, मूर्खता 
मन्यु प्रत्येक नायक दधीचि से लेकर भगत सिंह तक क्रोध, आवेश, असहिष्णुता, अधैर्य, निर्बलता, संकीर्णता, क्रूरता, मूर्खता, अहंकार

हरि अनत हरि कथा अनंता!
ऐसा लगता है मानो नायकों में पवित्रता का अंश कुछ अधिक ही निखरकर आया हो। लिखने का अंत नहीं है परंतु कहीं तो रुकना ही होगा, इसलिये यहाँ इस शृंखला का समापन करता हूँ। भूल-चूक सुधारने के लिये आप पर विश्वास है। ज़रा अपने प्रिय नायक/नायिका का नाम तो बताइये और सम्भव हो तो उसे आदर करने का कारण भी।
[समाप्त]
==========================
सम्बन्धित कड़ियाँ
==========================
प्रेरणादायक जीवन-चरित्र
नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 1
नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 2
नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 3
* नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 4
नायक किस मिट्टी से बनते हैं - 5
डॉक्टर रैंडी पौष (Randy Pausch)
११ सितम्बर के बहाने ...

42 comments:

  1. नायको पर चर्चा के पश्चात प्रतिनायक (खलनायक नही) पर भी लेख होना चाहीये।
    रावण, बाली जैसे प्रतिनायको मे भी नायकत्व के गुण रहे है।

    ब्रह्मऋषि परशुराम और ब्रह्मऋषि विश्वामित्र को किस श्रेणी मे रखा जाये ? दोनो ने अलग अलग प्रसंगो मे नायक और प्रतिनायक भूमिका निभायी है!

    आधुनिक काल मे हिटलर/लेनिन/स्टालीन भी एक काल तक नायक रहे है, एक क्रांति का नेतृत्व किया है। यह और है कि कालांतर मे वे नायक से प्रतिनायक होते हुए खलनायक बन गये!

    ReplyDelete
  2. कुशल विश्लेषण व अध्ययन के लिए बहुत -२ सम्मान प्रशंसा ,इसकी बहुत आवश्यकता है जी ,...शुक्रिया ../

    ReplyDelete
  3. इतनी सुन्दर तालिका !!
    कृपया इस प्रभावी तालिका में वर्णित सदगुणों पर - पद्य रचने की अनुमति दें ||

    ReplyDelete
  4. @आशीष जी,
    जी अवश्य। वैसे पिछले आलेखों में कई जगह उस बारीक अंतर को हाइलाइट करने का प्रयास किया है

    @उदयवीर जी,
    आभार!

    @रविकर जी,
    काव्य रचना अवश्य कीजिये। अनुमति की बात कहकर लज्जित न करें।

    ReplyDelete
  5. एक चिंतन परक , श्रम साध्य आलेख -श्रृखला!
    नायक बनते नहीं अवतरित ही होते हैं ....भले ही कतिपय उदाहरण इस प्रथम दृष्टया
    इस प्रेक्षण के विपरीत लगते हों -यह एक बार्न ट्रेट है!
    आपने कई व्यवहारगत प्रवृत्तियों को चिह्नित किया है ....
    किन्तु आशीष जी का प्रश्न भी बहुत मार्के का है -क्या प्रति नायकों में कुछ भी नायकत्व नहीं है ?
    जैसे रावण? मैं समझता हूँ निश्चय ही रावण में नायकत्व का सम्पूर्ण अभाव था और इसलिए महाज्ञानी होने के बाद भी
    वह किसी के लिए कल्याणकारी नहीं हुआ ...बस एक आत्मकेंद्रित व्यक्ति रहा ....
    जन कल्याण .लोक सेवा का गुण नायक में अनिवार्यतः होना चाहिए ...बुद्ध का महायान भी यही बताता है !

    ReplyDelete
  6. नायक हम सब मे हैं और समय समय पर बाहर भी आते हैं
    नायक क़ोई तब बनता हैं जब वो महज अपनों के लिये नहीं गैरो के लिये भी समय पडने पर "ट्रेन के आगे" कूद जाता हैं .
    नायक कभी ये नहीं सोचता की उसका क्या होगा अगर सोचेगा तो वो नायक नहीं बन सकता

    नायक के लिये "परिवार" अहम नहीं होता , परिवार यानी जो अपने हैं , नायक के लिये अहम होता हैं हर वो व्यक्ति जिसके लिये कुछ किया जा सके .
    मेरे नायक हैं
    रानी लक्ष्मी बाई इस लिये नहीं की वो वीरांगना थी बल्कि की इसलिये क्युकी वो सच के लिये लडती थी , शायद ही इतिहास मे क़ोई और होगा जिसने अपने बुरे वक्त में अपने बच्चे की थाली की एक मात्र रोटी अपने बच्चे के हाथो से दूसरे बच्चे को खिलवाई या जिसने अपने जेवर बेच कर अपनी प्रजा को राशन पहुचाया
    महात्मा गाँधी इस लिये क्युकी कौन है जो अपने बेटे को मिली हुई scholarship किसी दूसरे को दिलवा दे क्युकी दूसरा बेटे से ज्यादा काबिल हैं
    जय प्रकाश नारायण इस लिये क्युकी उनका जीवन समर्पित था अपने मुद्दों को

    नायक कौन हैं ये समय बता ही देता हैं हाँ वर्तमान में हमेशा खलनायक को "प्रशस्ति" नायक से ज्यादा मिलती हैं क्युकी उसका नेटवर्क ज्यादा तगड़ा होता हैं और जब नेटवर्क तगड़ा होता हैं गलत को सही बनाने मे वक्त नहीं लगता और वर्तमान का बड़ा गर्क नेट वर्क ही करता हैं :-)

    ReplyDelete
  7. badahi is शृंखला kae liyae

    ReplyDelete
  8. निः शब्द हूँ |
    ..... प्रणाम है आपको |

    ReplyDelete
  9. आपकी सूची मननीय है, अपने में पूर्ण है, चिन्तन में जुटते हैं।

    ReplyDelete
  10. नमन आपको और आपकी लेखनी को

    ReplyDelete
  11. नायकों के लिये अवसरों की कोई कमी नही है। very efficient quotation and available chart are very much satisfactory.Thanks.

    ReplyDelete
  12. आपकी यह पूरी श्रंखला एक मान्य दस्तावेज है ! आभार आपका इस रचना के लिए !

    ReplyDelete
  13. उत्तम सारांश - खासकर टेबल।

    ReplyDelete
  14. नायकत्व पर एक शोधात्मक आलेख ! बहुत कुछ जानकारी मिली !दिल्ली में दो दिन पहले क़त्ल करके भाग रहे हत्यारे पुलिस वाले को पीछा करके पकड़ने में एक नवयुवक सन्नी ने अपनी जान गवाँ दी !नायक वही होते हैं जो बिना किसी हित के अपना काम अंजाम देते हैं !

    ReplyDelete
  15. मैंने सोचा नहीं था इस नए ढंग से इस श्रृंखला का समापन होगा , बेहद सुन्दर

    ReplyDelete
  16. नायकत्व पर मैंने आपकी पाँच कड़ियाँ और आज की अंतिम कड़ी पढी.
    आपकी सारणी का भी अवलोकन किया.
    बेहतरीन आलेख के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें,आभार.

    ReplyDelete
  17. Mr. Sharma
    My daughter Shilpa always praises your writing to me. I came to this post by the link she sent. It is a very nice summary of the qualities that a hero must possess.
    Thanks and regards.

    ReplyDelete
  18. Respected Sudha Murty ji,

    I'm glad that you paid a visit to this blog. Thanks a lot for your time and kind words. I appreciate it.

    ReplyDelete
  19. @ संतोष जी,
    एक दम सही कहा आपने। सन्नी जैसे वीर बच्चे ही आज की निराशा के अन्धेरे में आशा की किरण बनकर उभरते हैं, काश हम उन्हें बचा पायें।

    ReplyDelete
  20. शानदार समापन प्रविष्ठि!!

    प्रतिनायक में नेतृत्व के सारे गुण होते है। बस चार मुख्य अवगुण होते है। यथा,अहंकार, कपट, लोभ और क्रोध : मान,माया,लोभ,क्रोध।

    नायक त्वरित निर्णय अवश्य लेते है। पर परिणामों को सोचे ही न ऐसे जड़बुद्धि भी नहीं होते। वे उचित अनुचित का पलभर में निर्णय ले लेते है।

    ReplyDelete
  21. हर कड़ी पढता रहा हूँ, और अधिकतर पर कुछ कहने योग्य नहीं पाया स्वयं को।
    आज भी कहूँगा नहीं कुछ, किन्तु आभार तो कहना ही है।
    बहुत समय तक गुना जाएगा इसे।

    ReplyDelete
  22. बहुत विस्तृत सुन्दर विश्लेषण ।

    दिल्ली में २४ सितम्बर को पुलिस का हैड कोन्स्टेबल एक बिजनेसमेन को मारकर, लूटकर भाग रहा था । तभी २४ वर्षीय एक युवक --हरेन्द्र सिंह उर्फ़ सन्नी ने एक दुसरे कोन्स्टेबल के साथ मिलकर स्कूटर पर चेज किया और उसे पकड़ने की कोशिश की । पुलिस वाला गुंडा पकड़ा तो गया लेकिन उसने सन्नी को तीन गोलियां मार दीं ।

    अस्पताल में सन्नी की २७ तारिख को डेथ हो गई । सन्नी अन्मेरिड था और परिवार का भरण पोषण कर रहा था ।

    ब्रेवहार्ट ! लेकिन अफ़सोस !

    ReplyDelete
  23. बहुत ही उपयोगी और श्रम साध्य रही ये श्रंखला. नायकत्व को एक नये परिपेक्षय में देखने की दॄष्टि इस श्रंखला ने प्रदान की है, प्रसंशनीय प्रयास के लिये बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  24. ओह... यह तो मेरे ड्राफ्ट में पड़ा है और आज ही टाइनी बुद्ध में भी इसके बारे में पढ़ा. सोच रहा हूँ इसे कल पोस्ट कर दूं.
    आपकी श्रृंखला अद्भुत है. संग्रहनीय है. लैपटौप में इसका संकलन करके रख लिया है ताकि यात्रादि में फुर्सत से पुनः पढ़ सकें.

    ReplyDelete
  25. रोचक , उपयोगी , संग्रहणीय रही पूरी श्रृंखला!

    नवरात्र की बहुत शुभकामनायें...
    माँ सबका कल्याण करें!

    ReplyDelete
  26. तालिका ने तो चमत्कृत कर दिया। इसका प्रिन्ट लेकर टेबल पर लगाता हूँ। आभार।

    ReplyDelete
  27. कई बार नायकत्व दूसरो के लिए या समाज के भले के लिए नहीं निकालता है कई बार ये स्व पीड़ा से बाहर आता है ( गाँधी जी के ट्रेन से फेका जाना इस श्रेणी में रख सकते है ) | कभी कभी यही समाज के लिए काम करने के लिए और आगे बढ़ता जाता है तो कई बार बस एक रूप में बाहर आ कर समाप्त हो जाता है और गुमनामी में खो जाता है | आम आदमी के द्वारा किया गया साहसी काम आम आदमी को ज्यादा प्रेरित करता है हर व्यक्ति उससे जुड़ाव महसूस करता है और कुछ उसमे से मौका आने पर वही साहस दुहरा देते है किन्तु महान लोगों द्वारा किया गया साहस उस तरह आम आदमी को प्रेरित नहीं कर पता है क्योकि आम आदमी को लगाने लगता है की ये साहस करने वाला तो महान है हम उस तक नहीं पहुंचा सकते |

    ReplyDelete
  28. बहुत ही प्रेरक और श्रमसाध्य आलेख...
    टेबल तो सेव कर के रख लिया है..ताकि बार-बार पढ़ा जा सके.
    एक बेहतरीन श्रृंखला..

    ReplyDelete
  29. इतना सुन्दर समापन..ऐसी परिपुष्ट तालिका..

    क्या कहूँ ???

    नमन है..शत शत नमन है आपको...

    ReplyDelete
  30. इस हरी कथा की अनंत सीमाओं तक पहुंचना हरी इच्छा से ही संभव है ...

    ReplyDelete
  31. आपका ये मूल्यवान लेख सहेजने लायक़ है ! इसके लिए आप निश्चित ही बधाई के पात्र हैं!

    ReplyDelete
  32. आपकी यह पूरी श्रंखला एक मान्य दस्तावेज है| आभार|

    ReplyDelete
  33. यह संकलन वास्तव में एक दस्तावेज़ है, एक पैमाना! कुछ भी कहने की गुंजायश नहीं!!

    ReplyDelete
  34. जीवन में उत्साह का संचार करने के लिए विमर्श के ऐसे आयोजन होते रहने चाहिए ......
    नवरात्रि पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  35. तो कर ही दिया आपने समापन।
    सारी श्रूँखला ही संग्रहणीय है, ये तालिका तो बहुउपयोगी सिद्ध होगी।
    एक बात और दिमाग में आ रही है,कभी मौका लगे तो कुछ प्रकाश इस पर भी डालियेगा। इस सूची में भी कुछ नाम ऐसे शामिल हैं जिनके नायकत्व पर संदेह करना भी अन्याय होगा, लेकिन उनकी अपनी संतान इन मापदंडों पर खरी नहीं उतरी जबकि आम जनता इनसे बहुत हद तक प्रभावित, प्रेरित होती रही है। ’चिराग तले अंधेरा’ या फ़िर ’वटवृक्ष जैसे महावृक्ष के साये में किसी और को पनपने का अवसर न मिलना’ क्या है, क्यों है?

    ReplyDelete
  36. मैंने सारे भाग पढ़े हैं और मुझे सही में ये बेहतरीन संकलन लगा..अपने एक बहुत ही करीबी मित्र को ये सीरीज ई-मेल किया पढ़ने के बाद, फिर टिप्पणी देने आया हूँ!! :)

    ReplyDelete
  37. पूरी श्रृंखला एक खोजी दस्तावेज की तरह संग्रहणीय है। आपके श्रम को नमन। इतमिनान से और मूड से पढ़ना चाहता था इसलिए आने में विलंब हुआ।

    आज से लगभग 30 वर्ष पहले मैने एक रूसी उपन्यास पढ़ा था लेखक का नाम याद नहीं। हिंदी अनुवाद अमृत राय ने किया था..नाम भी ठीक से याद नहीं..लेकिन नायक की वीरता याद है। वह एक अपाहिज सैनिक था जो बाद में चलकर बड़ा लेखक बना। वह तब तक संघर्ष करता रहा जब तक कि उसके शरीर का एक अंग भी सक्रीय था। पैर से तो वह अपाहिज था ही..धीरे-धीरे पहले एक हाथ में फिर दूसरे में लकवा मार गया। जब वह लिखने लायक नहीं रहा तो उसने बोल कर लिखवाना शुरू किया। आँखें भी जाती रहीं तब भी वह जीवन के अंतिम क्षण तक बोल कर उपन्यास लिखवाता रहा। याद नहीं आ रहा कि वे कौन थे। लेकिन आज भी उनकी वीरता..जीवन में उनका संघर्ष, मेरे जेहन में जस का तस बैठा हुआ है।
    जब भी नायक की बात होती है तो मुझे तो वही चरित्र सबसे अधिक प्रभावित करता है।

    ReplyDelete
  38. देवेन्द्र जी,

    वह उपन्यास निकोलाई ऑस्ट्रोव्स्की (1904–1936) द्वारा लिखित है। अंग्रेज़ी शीर्षक "हाउ द स्टील वाज़ टेम्पर्ड" है। उपन्यास पढने का सौभाग्य नहीं मिला पर उसके बारे में सुना अवश्य है। अमृतराय जी द्वारा किये गये अनुवाद की जानकारीके लिये धन्यवाद!

    ReplyDelete
  39. इतने विलम्‍ब से पढने का एक लाभ यह भी कि जो कुछ मैं कह पाता, उससे अधिक और उससे बेहतर शब्‍दों में कह दिया गया। यह श्रृंखला सचमुच में संग्रहणीय है। तालिका तो अपने आप में अनूठी है। आपके इस परिश्रम को नमन।

    ReplyDelete
  40. @ उनकी अपनी संतान इन मापदंडों पर खरी नहीं उतरी जबकि आम जनता इनसे बहुत हद तक प्रभावित, प्रेरित होती रही है। ’चिराग तले अंधेरा’ या फ़िर ’वटवृक्ष जैसे महावृक्ष के साये में किसी और को पनपने का अवसर न मिलना’ क्या है, क्यों है?

    संजय, तुम्हारी बात नायकत्व के सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है। जहाँ तक मैं समझता हूँ, नायक किसी को भी इग्नोर नहीं करते - अपने परिवार को भी, फिर भी ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ नायकों की संतति विपरीत निकली। इस विषय पर पहले काफ़ी मनन किया है, समय मिलने पर अवश्य लिखा जायेगा, आभार!

    ReplyDelete
  41. लक्षण, गुण और विशेषताओं को परिभाषित करना और उन परिभाषाओं के आधार पर पहचान करना मुश्किल कार्य होता है। क्योंकि किसी से परिभाषा आती है तो उस परिभाषा के आधार पर पहचान करना नहीं आता है। तो किसी से प्रतिरूप की पहचान करते आता है परन्तु उन्हें परिभाषित करते नहीं आता है।

    परन्तु भैया, आपसे दोनों कार्य आतें हैं

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।