Wednesday, October 19, 2011

अनुरागी मन - कहानी अंतिम कड़ी (भाग 21)

अनुरागी मन - अब तक - भाग 1भाग 2भाग 3भाग 4भाग 5भाग 6भाग 7भाग 8भाग 9भाग 10भाग 11भाग 12भाग 13भाग 14भाग 15भाग 16भाग 17भाग 18भाग 19भाग 20;
पिछले अंकों में आपने पढा: दादाजी की मृत्यु, एक अप्सरा का छल, पिताजी की कठिनाइयाँ - वीर सिंह पहले ही बहुत उदास थे, फिर पता पता लगा कि उनकी जुड़वाँ बहन जन्मते ही संसार त्याग चुकी थी। ईश्वर पर तो उनका विश्वास डांवाडोल होने लगा ही था, जीवन भी निस्सार लगने लगा था। ऐसा कोई भी नहीं था जिससे अपने हृदय की पीडा कह पाते। तभी अचानक रज्जू भैय्या घर आये और जीवन सम्बन्धी कुछ सूत्र दे गये| ज़रीना खानम के विवाह के अवसर पर झरना के विषय में हुई बड़ी ग़लतफ़हमी सामने आयी जिसने वीर के हृदय को ग्लानि से भर दिया। और उसके बाद निक्की के बारे में भी सब कुछ स्पष्ट हो गया। वीर की नौकरी लगी और ईर, बीर, फ़त्ते साथ में नोएडा रहने लगे। वीर ने अपनी दर्दभरी दास्ताँ दोस्तों को सुनाई और वे तीनों झरना के लिये मन्नत मांगने थानेसर पहुँच गये। फिर एक दिन जब तीनों परिक्रमा रेस्त्राँ में थे तब वीर ने वहाँ झरना को देखा परंतु झरना ने बात करना तो दूर, उन्हें पहचानने से भी इनकार कर दिया। वापस घर आते समय एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मारी और पुलिस ने अस्पताल पहुँचाया।
अब आगे भाग 21 ...

दिल्ली मेरी दिल्ली
पुलिस ने फ़ोन से तीनों के घर पर सूचना भिजवा दी। ईर और फ़त्ते को तो प्राथमिक चिकित्सा के बाद छोड़ दिया गया। मगर वीर को गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया। तब तक सुबह हो चुकी थी। ईर और फ़त्ते उनीन्दे बैठे बाहर इंतज़ार कर रहे थे। बीच में कुछ डॉक्टरों ने इन दोनों को वीर की स्थिति के बारे में ब्रीफ़िंग भी दी। उनके जाने के बाद दोनों विचारमग्न थे कि बाहर का दरवाज़ा खुला और मानो सुबह की रोशनी की किरण जगमगाई हो। सूर्य के प्रकाश के साथ ही एक बदहवास कंचनकाया अन्दर आयी। एक पल ठिठककर झरना ने ईर और फ़त्ते को देखा और फिर घबराकर पूछा, "वीर? ... वीर कहाँ है?"

"ठीक है। अन्दर है।" ईर ने बताया।

"तुम लोग यहाँ हो तो वह अन्दर क्यों है?" झरना की आँखों से स्पष्ट था कि वह रात भर सो नहीं सकी थी।

"उसके कन्धे में लगी है थोड़ी। सीरियस है पर ठीक हो जायेगा।" फ़त्ते ने झरना को दिलासा देते हुए कहा। वह कहना चाहता था कि अगर आज आना ही था तो कल क्यों चली गयी थीं। मगर उसे यह समय ऐसी बात के लिये ठीक नहीं लगा। झरना ने बताया कि वह वीर से अब भी बहुत प्यार करती है और सदा करती रहेगी। दिल्ली आने से पहले वह नई सराय जाकर उसकी दादी और माँ से मिली भी थी और नोएडा का पता भी लेकर आयी थी। लेकिन साथ-साथ वह वीर के पिछले व्यवहार के कारण उससे बहुत गुस्सा भी थी और उसे यह भी समझाना चाहती थी कि बेरुखी कितनी क्रूर होती है। लेकिन परिक्रमा में वीर के प्रति अपने दुर्व्यवहार के बाद वह रात भर सो न सकी। अलस्सुबह फ़त्ते के घर पहुँची और वहाँ से सारी बात पता लगते ही अस्पताल आयी।

झरना ने बताया कि उसके माता-पिता के जाने के बाद बस वीर ही एक ऐसा व्यक्ति है जिसे वह नितांत अपना मानती है और उस पर अपना अधिकार समझती है। शायद इसी कारण उसकी अपेक्षा कुछ अधिक ही बढ गयी थी। उसे लगा कि जब वह परिक्रमा से बाहर जायेगी तो वीर आगे बढकर उसे रोक लेगा, जाने नहीं देगा। फ़त्ते ने बताया कि वीर तो रोकने जा रहा था पर उसे फ़त्ते ने पकड़कर रोका हुआ था। झरना ने अपने हाथों से उन दोनों का एक-एक हाथ पकड़कर एक घेरा बनाया। फिर आंखें बन्द करके वीर के लिये एकसाथ मिलकर प्रार्थना करने को कहा। तीनों ने मन में भगवान का नाम लिया। तीनों की आँख से मानो अनुराग के झरने बह रहे थे।

आँखें खुलीं तो दो डॉक्टर उनके सामने खड़े थे।

एक ने कहना आरम्भ किया, "हमें अफ़सोस है कि ..."

दूसरे ने वाक्य पूर्ण किया, "ही इज़ नो मोर! वी आर एक्स्ट्रीमली सॉरी! ... ... ..." वे बोलते गए पर शब्द मानो अपना अर्थ खो चुके थे।

अपने साथ आने का इशारा करके डॉक्टर उन्हें वहाँ तक ले गये जहाँ वीर ने अंतिम साँस ली थी। फ़फ़क-फ़फ़क कर रोते हुए फ़त्ते ने अपनी जेब से निकालकर कागज़ का एक छोटा सा टुकड़ा सिसकती हुई झरना को दिया जिसे वीर ने दुर्घटना के तुरन्त बाद फ़त्ते की सहायता से लिखा था।
प्रिय झरना,

बाबा रे, मेरी परी को इतना गुस्सा आता है! सब दिखावा है न? मुझे पता है कि तुम मुझे चाहती हो। मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मेरे मरते दम तक तुम मेरे दिल में रहोगी। ईश्वर तुम्हें सकुशल रखे।

केवल तुम्हारा,
अनुरागी मन
[समाप्त (अंततः)]

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* नहीं जाना कुँवर जी - पीनाज़ मसानी - अमीर आदमी गरीब आदमी
* अनुरागी मन - लता मंगेशकर - रजनीगन्धा

16 comments:

  1. अफ़सोस के अलावा दूसरी कोई बात कहना कठिन है

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  2. oh no - oh no - oh no ....

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  3. मेरी आशा, अपेक्षा और कल्‍पना के सर्वथा विपरी अन्‍त हुआ इस कथा का। शाम को इसे पढा था। तबसे उदासी जस की तस बनी हुई है। मन भारी है।

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  4. ऐसे अंत की उम्मीद नहीं थी ... ओह!

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  5. अच्छी प्रस्तुति!
    --
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

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  6. @शास्त्री जी,
    प्रस्तुति आपको पसन्द आयी, इसका शुक्रिया।

    @शिल्पा जी, वाणी जी, अली जी, विष्णु जी,
    आप लोगों की उदासी का अफ़सोस (और अफ़सोस की उदासी) है। शायद अब आपको अन्दाज़ लग गया होगा कि मैं यह कहानी जल्दी पूरी क्यों न कर सका।

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  7. oh god - i don't know how you managed to write the story at all
    :(

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  8. aap asa nahi kar sakte,asa kaise kar sakte hai sir?ye kya baat hui?chahe ye aapka sansmaran ho ya kahani hamre hero ko mat mariye,aur jab kahani me likh hi diya hai to ye aapki kahani ki antim kadi nahi hogi.aapko is kahani ka ant kisi aur mod ke sath badalna hi hoga ...hum sab pathkon ke lie please...jharna ki shadi kahi aur karwaiye,use veer naam ka beta dilwaiye...kuch bhi kariye kuch bhi is kahani ko udas mat choriye please....main sukhant chahti hu...janti hu ye jabarjasti hai par mera mn dukhant ke lie nahi maan raha....:(

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  9. नैट खराब था, तभी ठीक था ):

    वैसे गुलेरी जी की लिखी पंक्तियाँ हैं -
    "जीवन का है अंत, प्रेम का अंत नहीं
    इस कल्पतरू के लिये शिशिर हेमंत नहीं"

    अनुरागी मन होना तो ऐसा ही चाहिये, जिसे मन में बसा लिया तो बसा लिया।

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  10. भावपूर्ण संवेदनशील सृजन .... शुक्रिया जी /

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  11. मुझे दुखद कहानियाँ पसंद नहीं, लेकिन संभवतः नेह केवल नेह होता है सुख-दुःख से कहीं ऊपर।
    संभवतः।

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  12. मूड खराब कर दिया आपने तो। ऐसे अंत की उम्मीद नहीं थी। छुट्ठी निकालकर इतमिनान से पढ़ने बैठा था। शेख चिल्ली के मजार से जो उम्मीद बंधी थी यहां आकर तहस-नहस हो गई। ऐसे भी भला कोई अंत करता है! इतनी जल्दी क्या थी? अंततः समाप्त। यह भी कोई बात हुई। वीर को मारना ही था तो झरना से मिलाया क्यों? पश्चिम में रहकर यही अंत करने की भावना जगी?

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  13. @कनु, शिल्पा, देवेन्द्र
    ,
    कहानी जो है, जैसी है, आपके सामने है। आभार!

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  14. उदयवीर जी,
    आभार!

    अविनाश, संजय,
    सहमत हूँ, आभार!

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  15. पूरे २१ भाग पढ़ गया एक साथ! १-२० तक पसंद आये, २१वा नहीं!

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मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।