कल शाम की सैर के बाद घर जाते हुए मैं सोच रहा था कि क्या शाहरुख खान के इस आरोप में दम है कि एक अमेरिकी हवाई अड्डे पर उनसे हुई पूछताछ के पीछे उनके उपनाम का भी हाथ है। पता नहीं ... मगर हल्ला काफी मचा। पिछले दिनों कमल हासन के साथ भी इसी तरह की घटना हुई थी। फर्क बस इतना ही था कि तब कहीं से कोई फतवा नहीं आया था और किसी ने भी इस घटना के नाम पर धर्म को नहीं भुनाया था। मैं सोच रहा था कि इस्लाम के नाम पर दुनिया भर में हिंसा फैलाने वालों ने इस्लाम की छवि इतनी ख़राब कर दी है कि जब तब किसी शाहरुख खान से पूछताछ हो जाती है और किसी इमरान हाशमी को घर नहीं मिलते। आख़िर खुदा के बन्दों ने इस्लाम का नेक नाम आतंकवादियों के हाथों लुटने से बचाया क्यों नहीं? मैं शायद सोच में कुछ ज़्यादा ही डूबा था, जभी तो सैय्यद चाभीरामानी को आते हुए देख नहीं पाया।
सैय्यद चाभीरमानी से आप पहले भी मिल चुके हैं। ज़रा याद करिए सैय्यद चाभीरमानी और हिंदुत्वा एजेंडा वाली मुलाक़ात! कितना पकाया था हमें दाढी के नाम पर। हमारी ही किस्मत ख़राब थी कि अब फ़िर उनसे मुलाक़ात हो गयी। और इत्तेफाक देखिये कि शाहरुख खान को भी अपनी फ़िल्म की पब्लिसिटी कराने के लिए इसी हफ्ते अमेरिका आना पडा।
सैय्यद काफी गुस्से में थे। पास आए और शुरू हो गए, "अमेरिका में एयरपोर्ट के सुरक्षा कर्मियों की ज्यादती देखिये कि खान साहब से भी पूछताछ करली।"
"अरे वो सबसे करते हैं। कमल हासन से भी की थी और मामूती से भी। " हमने कड़वाहट कम करने के इरादे से कहा। बस जी, चाभीरामानी जी उखड गए हत्थे से। कहने लगे, "किंग खान कोई मामूली आदमी नहीं है। मजाल जो भारत में कोई एक सवाल भी पूछ के देख ले किसी शाही खान (दान) से! ये अमेरिका वाले तो इस्लाम के दुश्मन हैं। काफिरों की सरकार है वहाँ।"
"काफिरों की सरकार के मालिक तो आपके बराक हुसैन (ओबामा) ही हैं" हमने याद दिलाया।
"उससे क्या होता है? मुसलमानों के दिलों में बिग डैडी अमेरिका के खिलाफ नफरत ही रहेगी। यह गोरे तो सब हमसे जलते हैं" उन्होंने रंगभेद का ज़हर उगला।
हम जानते थे कि सैय्यद सुनेंगे नहीं फ़िर भी कोशिश की, "अरे वे गोरे नहीं काले ही हैं हम लोगों की तरह"
"हम लोगों की तरह? लाहौल विला कुव्वत? हम लोग कौन? काले होंगे आप। हमारा तो खालिस सिकन्दरी और चंगेजी खून है।"
हम समझ गए कि अगर चूक गए तो सैय्यद को बहुत देर झेलना पडेगा। इसलिए बात को चंगेज़ खान से छीनकर वापस शाहरूख खान तक लाने की एक कोशिश कर डाली। समझाने की कोशिश की कि वहाँ हवाई अड्डे पर सबकी चेकिंग होती है, जोर्ज क्लूनी की भी और टॉम हैंक्स की भी जिन्हें सारी दुनिया जानती है तो फ़िर खान साहब क्या चीज़ हैं। मगर आपको तो पता ही है कि जो मान जाए वो सैय्यद चाभीरामानी नहीं।
बोले, "बादशाह खान का कमाल और किलूनी जैसे मामूली एक्टरों से क्या मुकाबला? उनके फैन पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक में है।" सैय्यद इतना बौरा गए थे कि उन्हें किंग खान (शाहरुख) और बादशाह खान (भारत रत्न फ्रंटियर गांधी स्वर्गीय खान अब्दुल गफ्फार खान) में कोई फर्क नज़र नहीं आया। हमने फ़िर समझाने की कोशिश की मगर वे अपनी रौ में खान-दान के उपादान ही बताते रहे।
हमें एक और खान साहब याद आए जिनका मन किया तो अभयारण्य में जाकर सुरक्षित, संरक्षित और संकटग्रस्त पशुओं का शिकार कर डालते है। हुई किसी सुरक्षाकर्मी की हिम्मत जो कुछ पूछता? हम सोचने लगे कि अगर पशु-हिंसा का विरोध करने वाला भारतीय विश्नोई समाज न होता तो पूरा जंगल एक खान साहब ही खा गए होते। मगर सैय्यद अभी चुप नहीं हुए थे। बोले, "खान तो हर जगह बादशाह ही होता है। बाकी सबसे ऊपर। दुबई, मुम्बई, कराची हो या लन्दन और न्यूयॉर्क हो।"
मुझे याद आया जब एक और खान साहब ने दारू पीकर सड़क किनारे सोते हुए मजलूमों पर गाडी चढ़ा दी थी पुराने ज़माने के तैमूरी या गज़न्दिव बादशाही की तरह। बस मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए। समझ आ गया कि यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि ९/११ में ३००० मासूमों को खोने के बाद भी अमेरिका को अपने ही हवाई अड्डे पर अनजान लोगों से पूछताछ करने का हक है या नहीं। सवाल यह है कि बादशाह भी वहाँ मनमानी क्यों नहीं कर सकता। बुतपरस्ती कुफ़्र है तो चाभीरमानी शख्सियतपरस्ती कर लेंगे, लेकिन करेंगे ज़रूर।
अगर आप पिट्सबर्ग में नहीं रहते हैं तो सय्यद चाभीरामानी से तो नहीं मिल पायेंगे। मगर क्या फर्क पड़ता है उनके कई और भाई इस घटना का इस्लामीकरण करने को तैयार बैठे हैं। और ऐसे लोग कोई अनपढ़ गरीब नहीं हैं बल्कि पत्रकारिता पढ़े लिखे जूताकार हैं।
सैय्यद ने ध्यान बँटा दिया इसलिए लित्तू भाई की अगली कड़ी आज नहीं प्रस्तुत कर रहा हूँ। परन्तु शीघ्र ही वापस आता हूँ। तब तक के लिए क्षमा चाहता हूँ।
सैय्यद चाभीरमानी से आप पहले भी मिल चुके हैं। ज़रा याद करिए सैय्यद चाभीरमानी और हिंदुत्वा एजेंडा वाली मुलाक़ात! कितना पकाया था हमें दाढी के नाम पर। हमारी ही किस्मत ख़राब थी कि अब फ़िर उनसे मुलाक़ात हो गयी। और इत्तेफाक देखिये कि शाहरुख खान को भी अपनी फ़िल्म की पब्लिसिटी कराने के लिए इसी हफ्ते अमेरिका आना पडा।
सैय्यद काफी गुस्से में थे। पास आए और शुरू हो गए, "अमेरिका में एयरपोर्ट के सुरक्षा कर्मियों की ज्यादती देखिये कि खान साहब से भी पूछताछ करली।"
"अरे वो सबसे करते हैं। कमल हासन से भी की थी और मामूती से भी। " हमने कड़वाहट कम करने के इरादे से कहा। बस जी, चाभीरामानी जी उखड गए हत्थे से। कहने लगे, "किंग खान कोई मामूली आदमी नहीं है। मजाल जो भारत में कोई एक सवाल भी पूछ के देख ले किसी शाही खान (दान) से! ये अमेरिका वाले तो इस्लाम के दुश्मन हैं। काफिरों की सरकार है वहाँ।"
"काफिरों की सरकार के मालिक तो आपके बराक हुसैन (ओबामा) ही हैं" हमने याद दिलाया।
"उससे क्या होता है? मुसलमानों के दिलों में बिग डैडी अमेरिका के खिलाफ नफरत ही रहेगी। यह गोरे तो सब हमसे जलते हैं" उन्होंने रंगभेद का ज़हर उगला।
हम जानते थे कि सैय्यद सुनेंगे नहीं फ़िर भी कोशिश की, "अरे वे गोरे नहीं काले ही हैं हम लोगों की तरह"
"हम लोगों की तरह? लाहौल विला कुव्वत? हम लोग कौन? काले होंगे आप। हमारा तो खालिस सिकन्दरी और चंगेजी खून है।"
हम समझ गए कि अगर चूक गए तो सैय्यद को बहुत देर झेलना पडेगा। इसलिए बात को चंगेज़ खान से छीनकर वापस शाहरूख खान तक लाने की एक कोशिश कर डाली। समझाने की कोशिश की कि वहाँ हवाई अड्डे पर सबकी चेकिंग होती है, जोर्ज क्लूनी की भी और टॉम हैंक्स की भी जिन्हें सारी दुनिया जानती है तो फ़िर खान साहब क्या चीज़ हैं। मगर आपको तो पता ही है कि जो मान जाए वो सैय्यद चाभीरामानी नहीं।
बोले, "बादशाह खान का कमाल और किलूनी जैसे मामूली एक्टरों से क्या मुकाबला? उनके फैन पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक में है।" सैय्यद इतना बौरा गए थे कि उन्हें किंग खान (शाहरुख) और बादशाह खान (भारत रत्न फ्रंटियर गांधी स्वर्गीय खान अब्दुल गफ्फार खान) में कोई फर्क नज़र नहीं आया। हमने फ़िर समझाने की कोशिश की मगर वे अपनी रौ में खान-दान के उपादान ही बताते रहे।
हमें एक और खान साहब याद आए जिनका मन किया तो अभयारण्य में जाकर सुरक्षित, संरक्षित और संकटग्रस्त पशुओं का शिकार कर डालते है। हुई किसी सुरक्षाकर्मी की हिम्मत जो कुछ पूछता? हम सोचने लगे कि अगर पशु-हिंसा का विरोध करने वाला भारतीय विश्नोई समाज न होता तो पूरा जंगल एक खान साहब ही खा गए होते। मगर सैय्यद अभी चुप नहीं हुए थे। बोले, "खान तो हर जगह बादशाह ही होता है। बाकी सबसे ऊपर। दुबई, मुम्बई, कराची हो या लन्दन और न्यूयॉर्क हो।"
मुझे याद आया जब एक और खान साहब ने दारू पीकर सड़क किनारे सोते हुए मजलूमों पर गाडी चढ़ा दी थी पुराने ज़माने के तैमूरी या गज़न्दिव बादशाही की तरह। बस मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए। समझ आ गया कि यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि ९/११ में ३००० मासूमों को खोने के बाद भी अमेरिका को अपने ही हवाई अड्डे पर अनजान लोगों से पूछताछ करने का हक है या नहीं। सवाल यह है कि बादशाह भी वहाँ मनमानी क्यों नहीं कर सकता। बुतपरस्ती कुफ़्र है तो चाभीरमानी शख्सियतपरस्ती कर लेंगे, लेकिन करेंगे ज़रूर।
अगर आप पिट्सबर्ग में नहीं रहते हैं तो सय्यद चाभीरामानी से तो नहीं मिल पायेंगे। मगर क्या फर्क पड़ता है उनके कई और भाई इस घटना का इस्लामीकरण करने को तैयार बैठे हैं। और ऐसे लोग कोई अनपढ़ गरीब नहीं हैं बल्कि पत्रकारिता पढ़े लिखे जूताकार हैं।
सैय्यद ने ध्यान बँटा दिया इसलिए लित्तू भाई की अगली कड़ी आज नहीं प्रस्तुत कर रहा हूँ। परन्तु शीघ्र ही वापस आता हूँ। तब तक के लिए क्षमा चाहता हूँ।